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________________ अनपढ और मूर्ख भी है अर्थात् आप विद्वान् है भी और नही भी है, ये दोनो परस्पर विरोधी वाते सही है, इस बात को अव आप स्वीकार करेगे या नहीं ?" यह सुनकर मेरे विद्वान् मित्र को अपनी गलती का ज्ञान हो गया है ऐसा जान पडा। अक्सर मिलने का तथा पत्र-व्यवहार द्वारा सम्बन्ध निभाये रखने का वचन देकर उन्होने विदा ली । जाते-जाते उन्होने इस बात का भी मुझे विश्वास दिलाया कि वे इस विषय का गहरा अध्ययन करेगे और इस पर अधिक सोच-विचार भी करेगे । ठीक एक ऐसा ही दूसरा अनुभव मुझे न्यूयार्क शहर मे हुआ । इस बार एक तेजस्वी विद्यार्थी से मेरी भेंट हुई । वातचीत के दौरान मे उसने कहा "आज के वीसवी सदी के नाम से पहचाने जाने वाले इस युग मे बुद्धिवाद और विज्ञान जिस वस्तु को स्वीकार नही करते उसे फिर किसी भी व्यक्ति की ओर से स्वीकृति प्राप्त होना असम्भव है। आज के युग मे प्रयोगशाला मे जिसका प्रमाण प्राप्त न हुअा हो या जो बुद्धिगम्य न हो ऐसी कोई भी बात स्वीकार करने के लिये शायद ही कोई तैयार होगा। ___ यह विद्यार्थी भारतीय, गुजरात प्रदेश का रहने वाला तथा जैनधर्म का मानने वाला था। विलायत मे अपना अध्ययन पूरा करके विज्ञान के विषय मे उच्च अध्ययन करने की इच्छा से अब अमरीका आया हुआ था। उसने मुझे बुद्धिवाद सम्वन्धी विस्तृत जानकारी देनी शुरू की।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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