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________________ २०० इस तरह से विचार करने की आदत डालने से हमे सबसे बड़ा लाभ तो यह होता हैं कि हमारी समझने को शक्ति बहुत विकसित होती है । तदुपरान्त, हमारे भीतर समता, सहिष्णता दृढता, धैर्य, सत्यप्रियता, उदारता, तथा व्यवहारकुशलता श्रादि अनेक आवश्यक गुण अपने आप प्रकट होने लगते हैं। - सामान्यतया मनुष्य अपने आपको सच्चा मानता है । कई वार यह माना हुअा सच्चापन मूर्खता की पराकाष्ठा के समान होता है। "मै मूर्ख हूँ, निपट मूर्ख और अजानी हूँ' इस वात का पता मनुष्य को जल्दी नहीं लगता। जल्दी की तो बात ही क्या, लम्बे अरसे तक और कभी कभी तो इसका पता कभी लगता ही नहीं। यदि मनुष्य नयदृष्टि से विचार करना सीखे तो उसका अज्ञान दूर होता है। इस प्रकार से विचार करने का अभ्यास एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण Psycho-analysis करने में भी सहायक होता है । उसमे आखिर कल्याण ही होता है। ____ "इस नय-प्रकरण को समाप्त करने से पहले एक प्रार्थना है। वह प्रार्थना, सलाह, सूचना-या जो भी कहा जाययह कि "अपने आप को होशियार--सर्वगुणसम्पन्न मान कर और अहभाव को बीच मे लाकर कभी नहीं बलना, या वरतना चाहिये । दूसरे की सलाह, सूचना या सहायता प्राप्त करने से अपने आपको वचित नहीं रखना चाहिए। योग्य गुरु, गुरुजन या मित्र से मार्गदर्शन प्राप्त करने को हमेशा तत्पर रहना चाहिए।" 'गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता।' अव हमे 'सप्तभगी' पर विचार करना है। परन्तु उससे
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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