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________________ १६५ है। जो सुख अन्त मे पुन दु ख का कारण बनने वाला हो उसे सच्चा सुख माना ही नही जा सकता। इसलिए भौतिक दृष्टि से इस जगत् मे जिसे सुख अथवा दुख माना जाता है उसके विषय मे हम जब तक अपनी समझ को आध्यात्मिक स्वरूप नही देते तब तक भौतिक दृष्टि से भी हम सच्चे सुख के भोक्ता नही बन सकेगे-यह निश्चित वात है। निश्चय और व्यवहार की जो बात जैन तत्त्वनानियो ने वताई है सो सच्चे और अनन्त सुख को लक्ष्य मे रख कर ही वताई है। ऐसा होते हुए भी, रोजाना जीवन-व्यापार में भी ये दोनो दृष्टियॉ हमारे लिए अत्यन्त उपयोगी है । यह वात भी हमे समझ लेनी चाहिए। ___ हम एक कपडे की दुकान खोलना चाहते है। दुकान का स्थान आदि निश्चित करने के बाद जब हम माल खरीदने निकलते है। तव कहाँ जाते है ? कपडे के मारकेट मे या लोहा बाजार मे ? कपडे का व्यापार करने का निश्चय करके यदि हम कीलो के थैले खरीद लाएं तो क्या हो? यहाँ साध्य से विचलित होने से व्यापार मे असफलता ही तो मिलेगी, या और कुछ ? जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रो मे-सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक क्षेत्रो मे भी हमे अपना एक ध्येय निश्चित करना पडता है । ध्येय निर्धारित करने के बाद उस तक पहुँचा जा सके ऐसा ध्येय के अनुरूप आचरण करना पड़ता है। इजीनियर बनने का निश्चित करके यदि कोई विद्यार्थी एक इजीनियरिंग कालिज मे स्थान न मिलने से दूसरे इजीनियरिंग कॉलेज मे स्थान पाने का प्रयत्न करने के बदले नाट्यकला की
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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