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________________ [ १८३ ] __ हम ऊपर देख चुके हैं कि 'शब्द नय व्याकरणभेद से अर्थमेद' बताता है। परन्त यह एवभूत नय 'क्रियाभेद से अर्थभेद' सूचित करता है । इसमें खास ध्यान में रखने की बात यह है कि शब्द के अर्थ मे उल्लिखित क्रिया जिस समय न होती हो उस समय उस शब्द को यह नय उस अर्थ में स्वीकार नहीं करता। उदाहरणार्थ- 'गायक' शब्द का अर्थ होता है 'गीत गाने वाला' । एवभूत नय उसे सर्वदा गायक नहीं मानेगा। वह अादमी जिम समय गीत गाने की क्रिया करता होगा, तभी उसे 'गायक' के तौर पर स्वीकार करेगा। इसी तरह पुजारी जव पूजा की क्रिया करता होगा तभी यह नय उसे "पुजारी' कहेगा। व्यवहार में कई बार इस नय के अनुसार वर्ताव होता हुआ दिखाई देता है। उदाहरणार्थ कोई सरकारी कर्मचारी अथवा मिल में काम करने वाला कोई कारीगर जिस समय अपने २ कर्तव्य पर हो उस समय सरकारी तन्त्र, या मिल का कार्यवाहक तन्त्र उनके साथ जैसा वर्ताव करता है वैसा वर्ताव काम के वाद के समय मे नही करता। सरकारी अधिकारी जिस समय काम पर On duty हो तव उसके साथ यदि कोई मारपीट या दुर्व्यवहार करे तो सरकार उस अधिकारी का पक्ष लेती है। इस मामले मे यदि अदालत मे जाना पडे तो सरकार स्वय फरियादी बनती है, और उस अधिकारी को साक्षी वन कर जाना होता है। वही अधिकारी जव अपने घर पर या, वाहर Off duty कर्तव्य पर न हो तब यदि उसका किसी के साथ झगडा हो जाय तो उस हालत में उसके साथ सामान्य प्रजाजन का सा बर्ताव किया
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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