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________________ शुरू किया तब उन्होने तुरन्त ही उपरोक्त वाते कह कर मेरी जवान ही बन्द कर देने की कोशिश की । "देवो और दानवो ने मिलकर जब समुद्र मथन किया तब उससे विष और अमृत दोनो निकले थे, यह बात तो आप जानते ही होगे मेने पूछा । ען, "हाँ" उन्होने जवाब दिया । "तो फिर आप इस बात को स्वीकार करते है कि समुद्र मे विष और अमृत दोनो एक साथ थे ?" मैने पूछा । यह प्रश्न सुनकर मेरे मित्र कुछ सोच-विचार मे पड गये । वे सोच-विचार कर ही रहे थे कि मैने एक दूसरा प्रश्न पूछा । "विद्वान् वर्ग मे आपको आपको ज्ञानी और पडित सही है ?" "अवश्य सही है । वर्षो के अध्ययन के बाद विद्वत्ता प्राप्त हो सकी है । यदि लोग मुझे विद्वान् मानते है तो इसमे कुछ भी अवास्तविक नहीं है।" उन्होने उत्तर दिया । स्थान दिया गया है । लोग समझते है, क्या यह वात "अच्छा, यदि कोई आकर आपसे ऐसा कहे कि आप विद्वान् नही बल्कि निरे मूर्ख है, तो आप क्या कहेंगे ?" मेने न पूछा । " Absuid | वाहियात जवाव दिया । " उन्होने तुरन्त ही
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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