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________________ १७६ नय, दुर्नय न वने, सुनय बना रहे, इस हेतु से यहाँ हमें 'स्यात्' शब्द को ध्यान में रखकर चलना चाहिए । इस नय का नाम ही 'संग्रह' है, यत यह वस्तुग्रो के सग्राहक ( समग्र ) स्वरूप का ही दर्शन करवाता है । जब हम जीव, मनुष्य, जानवर, खनिज आदि शब्दो का प्रयोग करते है तो प्रत्येक शब्द मे बहुत से प्रकारो का समावेश होता है । यह संग्रह नय वस्तु के सामान्य यर्थ मे वस्तु का इस प्रकार प्रस्तुतीकरण करके उसका परिचय देता है । संग्रह नय के 'पर संग्रह' और 'अपर सग्रह' ये दो भेद बताये गये है । ये दोनो शब्द 'सामान्य' अर्थ के सूचक होते हुए भी एक मे 'महासामान्य' और दूसरे मे 'अवातर सामान्य ' का निर्देश किया गया है । यह नय वस्तु के किसी भी विशेष भाव को स्वीकार नहीं करता । उदाहरणत एक श्रालमारी मे कोट, पतलून, कमीज, धोती, साडी, यादि अनेक प्रकार के कपडे रखे हो तो यह नय इस का परिचय इस प्रकार देने के वदले केवल इतना ही कहेगा कि " श्रालमारी मे कपडे हैं ।" अनाज के गोदाम मे रखे हुए गेहूँ, चावल, दाल, मूंग, मोठ यादि का अलग अलग उल्लेख करने के बदले यह संग्रह नय कहेगा कि "गोदाम मे अनाज भरा है ।" हम देख सकते है कि व्यवहार मे भी हम प्राय इस प्रकार सामान्य अर्थ की बहुत सी बाते करते है । यह सग्रह नय पर ग्राधारित अभिप्राय है । यहाँ फिर हम 'स्यात्' शब्द को याद करे । नैगम नय मे हमने वस्तु के दो स्वरूप देखे, सामान्य और विशेष । उनमे से केवल एक 'सामान्य' को ही स्वीकार कर यह 'सग्रह नय' बैठ गया है । परन्तु 'स्यात्' शब्द को बीच मे लाने से तुरन्त
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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