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________________ १६४ के बदले केवल 'निक्षेप' शब्द का ही प्रयोग करेंगे तो भी समझने में कठिनाई नही होगी। अब हम इन चार निक्षपो का क्रमश. परिचय प्राप्त करेंगे। नामनिक्षेपः-व्यवहार चलाने के लिए, अपनी समझ को स्पष्ट और नियत्रित करने के लिये, किसी भी वस्तु की पहचान के हेतु हम उसकी कोई सज्ञा या नाम निश्चित करते है। इसे 'नामनिक्षेप' कहा जाता है। उदाहरणार्थ किसी पूनमचन्द के पाँच पुत्रो की पहचान के लिए प्रत्येक का अलग अलग नाम रखा जाता है, वह 'नामनिक्षेप' कहलाता है । इस 'निक्षेप'का सम्बन्ध वस्तु के नाम के साथ ही है, इस नाम के किसी अर्थ या भाव के साथ नही । जिस वस्तु, पदार्थ या व्यक्ति का उसमे रहे हुए किसी खास अर्थ, भाव या गुण के कारण कोई विशिष्ट नाम रखा गया हो तो वह अर्य 'नामनिक्षेप' के अन्तर्गत नही पाता। परन्तु यो समझना चाहिए कि व्यक्ति को पहचानने के लिये उसका जो नाम रखा जाय वह नाम और व्यक्ति स्वय 'नामनिक्षेप' है । उदाहरणत हनुमानजी का दूसरा नाम 'वजरग वली' है । यह दूसरा नाम हनुमानजी के विशिष्ट गुणो के कारण, विशेपण की तरह, प्रयुक्त होता है। यह नाम एक भाव सूचित करता है, इसलिये यद्यपि नाम 'नामनिक्षेप' के अन्तर्गत है, किन्तु हनुमानजी स्वय वहाँ 'नामनिक्षेप' मे नही आते । स्थापनानिक्षेप - किसी एक वस्तु मे जब हम दूसरी वस्तु की स्थापना करके, उस स्थाप्य वस्तु के नाम से पुकारे तव वहाँ
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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