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________________ १५८ नय वस्तु के एक ही स्वरूप की बात करता है, तो फिर उसे एकान्त या मिथ्याज्ञान क्यो नही कहा जा सकता ? इस प्रश्न का साधारण समाधान तो पहले दिया हो गया है । फिर भी, इस प्रश्न का ठीक उत्तर प्राप्त करके और विषय को समझ कर आगे बढे तो बाद मे चलकर किसी शका या कुतर्क को स्थान नही रहेगा । एकान्त कब कहा जा सकता है ? किसी एक व्रत से निर्णय करके, वस्तु के दूसरे स्वरूपो को स्वीकार करने से ही इन्कार कर दिया जाय तभी वह एकात अथवा मिथ्याज्ञान बनता है । नय के सम्बन्ध मे ऐसा नही है । जब कि एक नय वस्तु के एक ही स्वरूप को ग्रहण करता है तव दूसरे नय के अनुसार बताये गये दूसरे स्वरूपो का इनकार नही करता । दूसरे नयो के द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली बात, वस्तु का दूसरा स्वरूप - उसके प्रथम स्वरूप का विरोधी हो तो भी दूसरे नय के अनुसार उम दूसरे स्वरूप को तथ्यरूप में मानने का वह विरोध नही करता । जैसे कि 'संग्रह' नय के वोध के अनुसार वस्तु का स्वरूप 'अमुक' है ऐसा कहा जाता है तो उससे, 'नैगम' नय के अनुसार वस्तु का जो गुण धर्म कहा जाता है उसका विरोध या प्रस्वीकार नही किया जाता । इसके विपरीत सातो नय वस्तु के जो भिन्न भिन्न स्वरूप बताते है, वे प्रत्येक नय मे, गौरणतया ग्रपने अपने रूप मे स्वीकृत ही है । प्रतएव नयज्ञान मिथ्या सावित नही होता । दूसरी खास याद रखने की बात यह है कि, ये सब नय 'स्यादवाद के एक ग्रग या अवयव के समान होने के कारण स्यादवाद में रहे हुए 'स्यात्' शब्द की छत्रछाया मे ही कार्य
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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