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________________ १५५ उपमान प्रमाण - साहश्य ज्ञान के द्वारा जो ज्ञान होता है उसे 'उपमान प्रमाण' कहते है । उदाहरणार्थ- हमारे यहाँ एक मेहमान आते है । वे हमारे आँगन मे एक गाय बधी हुई देखते है | गाय को देखकर वे सज्जन कहते है कि 'हमारे प्रदेश मे भी ठीक गाय जैसा ही एक जानवर होता है, जिसे नीलगाय ( रोझ) कहते है । इसके बाद कभी उक्त सज्जन के प्रदेश मे जाने का प्रसग श्राने पर हम वहाँ ऐसा एक प्राणी देखते है जो गाय नही परन्तु गाय का जैसा है । उक्त महाशय की कही हुई बात उस समय हमे याद आती है कि 'गाय के समान रोझ होता है' (गौरिव गवय ) । इस पर से हम निर्णय कर लेते है कि 'यह प्राणी रोझ (नील गाय ) है ।' यह उपमान प्रमारण का उदाहरण हुआ । आगम प्रमाण - प्राप्त ( श्रद्धा रखने योग्य श्रद्ध ेय तथा प्रामाणिक ) पुरुषो के वचन, कथन या लेखन से हमे जो बोध (ज्ञान) होता है वह श्रागम प्रमाण कहलाता है । सामान्यतः शब्दो के आधार पर जो ज्ञान होता है उसे श्रुत प्रमाण कहते हैं । श्रागम को श्रुत का एक अंग माना गया है । ग्रागम प्रमाण मे हमे श्रद्धा का उपयोग भी करना पडता है । शास्त्रो मे जो जो बाते दर्शायी गई है, उनको स्वीकार हम करते है, सो शास्त्रप्रमाण के द्वारा ही करते है । आगमो ( शास्त्रो) के विषय मे एक महत्त्व की बात यह है कि, प्रत्यक्ष तथा अनुमान आदि प्रमाणो के विरुद्ध उनमे कुछ नही होता, और उनमें लिखित वचन आत्मविकास
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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