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________________ १४६ को, गुणो को या धर्मों को जानने पहचानने के लिये सात अलग अलग नयो का उपयोग किया गया है 1 'नय' के दो उपयोग है - एक 'ज्ञानात्मक' कहलाता है, जो खुद के समझने के लिये होता है, दूसरा 'वचनात्मक' अर्थात् दूसरो को समझाने के लिये । 1 'नय' को हम 'स्यादवाद' को समझने का व्याकरण कह सकते है । प्रत्येक भाषा का अपना अपना व्याकरण होता है । यदि संस्कृत भाषा अच्छी तरह सीखनी हो तो सबसे पहले उसके व्याकरण का अध्ययन करना पडता है । जव एक बार व्याकरण का ज्ञान अच्छी तरह हो जाता है तब इस महान् वाडमय को समझने-समझाने मे हमे कोई कठिनाई नही होती । इसी प्रकार अनेकातवाद - तत्त्वज्ञान को भली भांति समझने की जिस स्यादवादपद्धति का हमने उल्लेख किया है, उस पद्धति को समझने का यह एक व्याकरण है, ऐसा कहना अत्युक्ति न होगा । यदि हम इसे समस्त अनेकान्तवाद को समभने का व्याकरण माने तो भी अनुचित नही है । । स्यादवाद के साथ 'नय' रूपी व्याकरण का सम्वन्ध हम पहले समझ ले । आालकारिक भाषा मे, उपमा देकर यदि यह वात समझानी हो तो हम कहेंगे कि 'नय' 'नदी' की तरह है, और 'स्यादवाद' 'समुद्र' की तरह जिस प्रकार सब नदियाँ समुद्र मेजा मिलती हैं, उसी तरह सभी नय स्यादवाद रूपी महासागर मे मिल जाते है । स्यादवाद का पूर्ण दर्शन हम नय के द्वारा कर सकते है । इसीलिये जैन आगमो को 'स्यादवाद - श्रुतमय' माना गया है ।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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