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________________ १२५ इसलिए जव 'भाव की अपेक्षा' लेकर निर्णय करना हो तब जिस वस्तु के विपय मे विचार करते हो, उस वस्तु के खुद के गुण धर्मों को ध्यान मे लेना चाहिए । ___इस बात को भलीभांति समझने के लिए कुछ उदाहरण लेते है. १) 'काला या लाल रग' घडे का भाव है। २) 'मिठाम' शक्कर का भाव है। ३) 'रूप या कुरूप' मनुष्य का वाह्य भाव है । ४) 'स्वार्थ अथवा परमार्थ' मनुष्य का प्रातरिक भाव है। ५) 'उष्णता' अग्नि का तथा गीतलता पानी का भाव है । इस प्रकार प्रत्येक वस्तु के अपने अपने गुण धर्म और स्वभाव आदि का विचार करके 'भाव की अपेक्षा' का निर्णय करना चाहिये । इममे भी विवेक-बुद्धि का उपयोग आवश्यक है। ___ इन चारो आधारो को (अपेक्षानो को) अच्छी तरह समझने के लिये एक संयुक्त उदाहरण लेते है । एक वस्तु को लेकर अलग अलग अपेक्षा से किस प्रकार निर्णय होता है सो देखे । एक ऐरोप्लेन-विमान--का उदाहरण लीजिये । द्रव्य -अल्युमिनियम, लोहा, लकडी, आदि जिन पदार्थों का विमान बनाने मे उपयोग हुअा वे विमान के द्रव्य है । क्षेत्र -यहाँ उत्पादन तथा कार्य-ऐसे दो क्षेत्र है। यह लदन मे वना है, इसलिए उसका उत्पादनक्षेत्र 'लदन' है, अथवा लदन मे जिम स्थान पर उसे बनाने का कारखाना हो वह 'स्थान' उसका क्षेत्र है। कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत वह क्षेत्र आता है जहाँ वह जिस समय पड़ा हुआ हो अथवा उडता हो। पड़ा हुआ हो तो 'हवाई अड्डा' ( एरोड्रोम) और उड़ता हो तो
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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