SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६ इस का अर्थ स्पष्ट एवं निश्चित है । परन्तु उस वस्तु की उस स्थिति विशेष का विचार करते समय 'उसकी अन्य स्थितियाँ, अन्य यवस्थाएं तथा अन्य स्वरूप भी होते हैं" यह बात स्पष्टतया सूचित करना भी प्रावश्यक होने के कारण ही यह 'स्यात्' शब्द प्रयुक्त हुआ है । यदि यहाँ 'स्यात्' शब्द का प्रयोग न किया हो, तो उसके कारण अर्थात् इस शब्द के बिना निप्पन्न होने वाला निर्णय अनेकान्तात्मक होने के बदले एकान्तात्मक हो जाय । फिर हम भी उस वस्तु की अन्य किसी ग्रवस्या का विचार करना ही छोड़ दे । इसके परिग्राम स्वरूप, एक शोर हमारा निर्णय एकान्तात्मक ( ऐका - न्तिक ) तथा गलत बन जाय और दूसरी ओर वस्तु की अन्य अवस्था या स्वरूपो के विषय मे विशेष ज्ञान प्राप्ति से हम वचित रह जायें । इससे स्पष्ट होता है कि यह 'स्यात्' शब्द निरर्थक या सन्देह वाचक नहीं, बल्कि स्पष्ट, सगीन एव दृढ है | किसी भी वस्तु का निर्णय करते समय द्रव्य ( Substance) क्षेत्र (Place), काल ( Time ) और भाव ( Quality ) । इन चार बातो को लक्ष्य मे रखना आवश्यक है । यदि हमारा विचारक्रम इन चारो शर्तों (Conditions ) के प्राधीन न हो तो हमारे निर्णयो ( Conclusins) की भी वही स्थिति होगी जैसी कि " अन्धेर नगरी अनवुझ राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा" वाली शिक्षाप्रद हास्य कथा मे है । इसलिए यह 'स्यात्' शब्द भिन्न भिन्न अत- प्रनेकात का सूचक है और समस्त तत्त्वज्ञान का रहस्य है, यह हमे अच्छी तरह समझ लेना होगा । यदि हम इस शव्द को छोड़ दे तो
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy