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________________ १०६ - होता है उनको जो सम्मान प्राप्त हुग्रा सो उस विजय की अपेक्षा से — 'स्यात् ' था, और उनकी अद्भुत वोलिंग कानपुर के मैदान की, एव उस स्थान पर उस समय खेले गये टैस्ट मैच की अपेक्षा से 'स्यात् — मुन्दर' थी । इस उदाहरण से स्पष्ट होगा कि यदि हमें श्री जसु पटेल द्वारा कानपुर में की गई बोलिंग तथा उन्हे प्राप्त सम्मान के विषय मे कोई निश्चित कथन करना हो तो 'स्यात्' शब्द का प्रयोग करना ही होगा । इस शब्द का प्रयोग किये विना यदि ऐसा मीधा सादा वाक्य कहा जाय कि "श्री जमु पटेल को उनकी सुन्दर वोलिंग के उपलक्ष्य मे भारत सरकार ने 'पद्मश्री' का खिताव दिया", तो यह बात अधूरी मानी जाएगी और विवादास्पद बनेगी । ' स्यात् ' शब्द की महत्ता तथा श्रावश्यकता उपर्युक्त उदाहरण से अच्छी तरह समझ मे आ जाएगी । चलिए तो ग्रव इस शब्द को एव उसके ग्रर्थ को पूर्णतया समझ ले । सर्वप्रथम हम उस तथ्य को पुन याद करें 'प्रत्येक वस्तु अनेक परस्पर विरोधी गुण धर्मों से युक्त होती है ।' यदि ऐसा न होता तो 'स्यात् ' शब्द ग्रावश्यक न होता । परन्तु ऐसा ही है, इसीलिए 'स्यात्' शब्द श्रावश्यक एव अनिवार्य वन जाता है । उपर्युक्त तथ्य को समझाने या समझने मे 'स्यात्' शब्द का प्रयोग न किया जाय तो, उससे रहित, कोई भी कथन असत्य बन जाता है । इस बात को विशेषत समझने के लिये इस सप्तभगी का एक पद ले । 'स्यादस्त्येव । स्यात् + ग्रस्ति + एव = (1 कथ
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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