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________________ न करवा सकने के कारण उस वेचारे नौकर की मृत्यु हो गई। इस व्यक्ति के बारे मे हम क्या कहेगे ? दयालु',उदार ?, निर्दय , अधम ? जवाब देने की कोई आवश्यकता नही । यह वात तो आसानी से हमारी समझ में आ जाएगी। भिन्न-भिन्न क्षेत्रो मे ऐसे अनेक उदाहरण हमे देखने को मिलेगे । इन उदाहरणो के आधार पर हमे ज्ञात होगा कि जव जैन दार्गनिक लोग ऐसा कहते है कि एक ही वस्तु है भी और नही भी हे" तब वे अनेकात दृष्टि द्वारा ही यह बात कहते है और वह यथार्थ है । उनका यह कहना बिलकुल सही है । हमे भी इस बात को अवश्य स्वीकार करना चाहिये। अनेकातवादी दृष्टि के विषय मे ऐसी बाते बहुत ही समझने योग्य है, और यदि हम इन्हे अच्छी तरह समझ ले तो जगत और जीवन की सारी समस्याग्रो को हम बडो आसानी से सुलझा सकते है। अनेकात दृष्टि को अपनाकर यदि इस वात पर वडे गौर से सोच विचार करे तो हमे ज्ञात होगा कि एक ही चीज मे सत्य, असत्य, नित्यत्व और अनित्यत्व तथा एकत्व और अनेकत्व आदि एक ही समय पर मौजूद रहते है । इस बात को समझने मे हमे कोई कठिनाई न होगी। यह सब देखने और समझने के लिए अनेकातवाद का आश्रय लेना होगा । उसका आश्रय लिये विना कभी समझ मे नही आएगा। आज के इस विज्ञानवादी अणु-परमाणु-सशोधन-युग मे हम यह वात वडी आसानी से समझ पाते है कि एक और अनेक दोनो ही एक साथ, एक समय रहते है ।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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