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________________ 88 7. 1 अध्याय 46 विदेशों में जैन धर्म ब्रह्माणी मन्दिर (ब्राह्मी देवी का मन्दिर) एवं जैन महातीर्थ चम्बा घाटी के केन्द्रस्थल भरमौर की (जो कभी गद्दियारे राजाओं की राजधानी था) भौगोलिक खोजों से सिद्ध है कि वहां से एक मील की ऊंचाई पर स्थित काष्ठ मन्दिर में अधिष्ठित सिंहारूढ प्रतिमा ब्रह्मामणी की मानी जाती है। आदि काल में इस क्षेत्र पर ब्रह्मामणी देवी का अद्वितीय प्रभाव था । अत उसी के नाम पर इस स्थान को ब्रह्मपुरी तथा इस भूमि को ब्रह्माणी (ब्राह्मी की भूमि माना जाता है। यहा चौरसिया का मैदान भी है जहां चौरासी धर्मो के प्रतीक चिह्न उत्कीर्ण हैं। आदिकाल में इस स्थान पर ब्रह्मामणी देवी का एक विशाल मन्दिर था किन्तु काल के थपेड़ों में भी उसकी एक वेदी अक्षुण्ण बची रह गई है जिस पर पुष्पमय चित्रकारी है। डॉ कनिघम की दृष्टि में वह जैन चित्रकारी है। (भरमौर का गणेश मन्दिर) । यह स्थान किसी समय श्रमण संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था । "जब सिकन्दर तक्षशिला मे आया तो उसने अनेक जिम्नोसोफिस्ट- जैन साधुओं को रावी के तट पर पडे देखा था। उनकी सहनशीलता को उसने मान्य किया था और उनमें से एक को अपने साथ ले जाने की इच्छा प्रकट की थी। इन साधुओं में ज्येष्ठ थे आचार्य दौलामस । अवशिष्ट साधु उनके पास शिष्यवत् रहते थे। उन्होंने न तो स्वयं जाना स्वीकार किया और न दूसरो को जाने की आज्ञा दी, तब सिकन्दर उनमें से एक को ले जाने में किसी प्रकार सफल हो गया था । उस साधु के जाने के बाद ऐसा लगता है कि रावी के इस प्रदेश में अनेक जैन साधु पश्चिम और मध्य एशिया मे फैलते गए और वहा उन्होंने जैन धर्म का प्रसार एवं प्रचार किया। इस क्षेत्र में जैन साधुओं की यह परम्परा एक लम्बे समय से अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है। आदि तीर्थकर ऋषभदेव ने वेदपूर्व काल में पंजाब और सीमान्त तथा पश्चिम एशिया अपने दूसरे पुत्र बाहुबली
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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