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________________ प्रकाशकीय हमे 'विदेशों मे जैनधर्म' पुस्तक पाठको के हाथों मे समर्पित करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है। - इसमे जैनधर्म और सस्कृति की गौरवशाली परम्परा का, जोकि भारत ही नही अपितु विश्व के कोने-कोने मे हजारों वर्ष पूर्व परिव्याप्त थी, स्वल्प विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसमे जैनधर्म की अपूर्व प्रगति, पुराकाल में जेन मन्दिरों के निर्माण, विशाल भव्य मूर्तियो की स्थापना. स्तूपो के निर्माण आदि के विषय मे दुर्लभ-अनुपलब्ध सामग्री प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। इसके सुविज्ञ लेखक गोकुलप्रसाद जैन, जैन इतिहास के मर्मज्ञ विद्वान हैं। आपन आदि तीर्थकर ऋषभदेव के विभिन्न जीवन प्रसंगों एवं अन्य विषयो पर अनेक शोधपूर्ण लेख लिखे हे जो कि समय-समय पर देश के विभिन्न विश्वविद्यालयो एव शोध सस्थाना में प्रस्तुत किये गये हैं। 'श्रमण सस्कृति का विश्वव्यापी प्रसार' विषय पर 'श्री दिगम्बर जैन महासमिति पत्रिका' के विभिन्न अको में आपकी एक शोधपूर्ण लेखमाला भी प्रकाशित हुई थी, जिसका देश-विदेश मे भारी स्वागत हुआ। ____ अनेकान्त (वर्ष 50 किरण 1) जनवरी-मार्च 1997 मे प्रकाशित आपके 'पार्श्व -महावीर- बुद्ध युग के सोलह महाजनपद' लेख की विशेष सराहना की गई है। श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन (धर्म संरक्षिणी) महासभा ने समय की माग और आवश्यकता के अनुरूप जैन इतिहास की वैज्ञानिक शोध-खोज एव जैन इतिहास के प्रणयन को सदैव प्रश्रय दिया है। इस क्षेत्र में महासभा की उपलब्धियॉ तो सर्व विदित ही है। इसी नीति के अनुरूप इस पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है। इस पुस्तक के प्रकाशन की योजना जल्दी-जल्दी में बनी है। अत इसमे कमिया और त्रुटियां रह जाना स्वाभाविक है। आशा है सुधी पाठक और सुविज्ञ मनीषी इसकी कमियों की ओर ध्यान नहीं देगे। निर्मल कुमार सेठी (अध्यक्ष) श्रीभारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा दिल्ली
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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