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________________ विदेशों में जैन धर्म 43 आदि थे। बाद में ये लोग जिम्नोसोफिस्ट कहलाये। पाइथागोरस का शिष्य प्लेटो था। इनके साहित्य में ऋषभ का उल्लेख रेशेफ के रूप में मिलता । कुछ विद्वानों की धारणा है कि पार्श्वनाथ की परम्परा में जिन पिहिताश्रव मुनि का उल्लेख मिलता है. वे ग्रीक विद्वान पाइथागोरस ही थे। प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता पं. सुन्दरलाल ने अपनी पुस्तक "हजरत ईसा और ईसाई धर्म" में पृष्ठ 162 पर बतलाया है कि भारत में आकर हजरत ईसा बहुत समय तक जैन साधुओं के साथ रहे। जैन साधुओं से उन्होंने आध्यात्मिक शिक्षा और आचार-विचार की मूल भावना प्राप्त की। हजरत ईसा ने जो पैलेस्टाइन मे आत्म-शुद्धि के लिए 40 दिन का उपवास किया था, वह पैलेस्टाइन के प्रख्यात यहूदी विद्वान जाजक्स के मतानुसार, भारत का पालीताना जैन क्षेत्र है। पालीताना मे ही उन्होंने जैन साधुओं से धार्मिक शिक्षा ग्रहण की। इसी कारण ईसाई सिद्धान्तों पर जैन धर्म का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। हजेरत ईसा बहुत दिनों तक जैन साधुओं के शिष्य रहकर नेपाल चले गये, वहां से हिमालय पर्वत के मार्ग से ईरान चले आए। ईरान मे आकर उन्होंने धर्म-उपदेश प्रारम्भ किया। पालीताना के नामानुसार ईरान में पैलेस्टाइन नगर बसाया गया जिसे आज फिलिस्तीन भी कहते है। इसी नगर मे ईसा को फांसी दी गई थी। अध्याय 15 ईरान (पर्शिया) और जैन धर्म अहिंसा धर्म के प्रचारक जरथुस्त ने पर्शिया में सर्वत्र अहिंसा का व्यापक प्रचार-प्रसार किया और अनेक देवालय भी स्थापित किए। प्रोफेसर ए. चक्रवर्ती के अनुसार ईरान मे जैन धर्म का प्रसार रहा है तथा उत्खनन में जैन प्रतिमायें निकलती रही हैं। जरथुस्त (द्वितीय) अहिंसा धर्म से अत्यधिक प्रभावित थे तथा उन पर जैन धर्म का पूरा प्रभाव था। ए. चक्रवर्ती ने ईरान में जैन संस्कृति के प्रसार पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। जरथुस्त के छन्दोवेद पर जैन संस्कृति का
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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