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________________ विदेशों में जैन धर्म अध्याय 13 41 पार्श्व- महावीर - बुद्ध युग के 16 महाजनपद (1000 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व) पार्श्वनाथ - महावीर - बुद्ध युग मे भारत मे जैन संस्कृति का पुनरुद्धार और व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ। उस काल मे निम्नलिखित सोलह महाजनपद विद्यमान थे जो हजारो वर्ष पुरानी श्रमण संस्कृति के पक्षधर और आश्रयदाता थे। इनमे जैन सस्कृति की व्यापक प्रभावना विद्यमान थी । 1 वज्जी सघ महाजनपद, 2 काशी संघ महाजनपद, 3. कोशल सघ महाजनपद, 4 मल्ल सघ महाजनपद, 5 अवन्ती सघ महाजनपद, 6. वत्स संघ महाजनपद, 7. शौरसेन संघ महाजनपद, 8 मगध संघ महाजनपद, 9 अश्वक संघ महाजनपद, 10 पाण्ड्य सघ महाजनपद, 11. सिहल संघ महाजनपद, 12 सिन्धु- सौवीर महाजनपद, 13. गान्धार सघ महाजनपद, 14 कम्बोज सघ महाजनपद, 15 अग संघ महाजनपद, 16. वग सघ महाजनपद, इनके अतिरिक्त भारत के शेष भागो मे विद्यमान कुरुसंघ जनपद पाचाल संघ जनपद, चेदिसघ जनपद मत्स्य संघ जनपद आदि अन्य जनपदो और गणपदो मे भी जैन संस्कृति का पर्याप्त प्रचार-प्रसार था । ऋग्वेद तथा अन्य वेदो मे जनपदो का उल्लेख नही मिलता । यह तो चिरागत श्रमण परम्परा की विशिष्ट राजनैतिक एव सास्कृतिक-सामाजिक व्यवस्था थी जो पुराकाल के सुदीर्घ कालीन देवासुर संग्राम के कारण. नष्ट-भ्रष्ट हो गई थी तथा द्वापर युग मे बाईसवे तीर्थंकर नेमिनाथ के तीर्थकाल के अन्तिम चरण में इसी जनपद व्यवस्था की, श्रमण धर्म के पुनरुत्थान के साथ ही, पुनर्स्थापना एवं प्रत्यास्थापना हो रही थी । यह 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के तीर्थ काल के आरम्भ 10वीं 9वीं शती ईसा पूर्व का युग था । इसे उपनिषद काल भी कहा जाता है। सर्व प्रथम ब्राह्मण-ग्रन्थों में जनपदों का उल्लेख मिलता है । ब्राह्मण काल में धीरे-धीरे इन जनपदों का महाजनपदों के रूप में प्रत्यास्थापन और
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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