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________________ विदेशों में जैन धर्म 38 1 दक्षिण अमेरिका, तथा दक्षिण पूर्व एशिया से भारत का सम्पर्क कराते थे इससे उन देशों पर भारतीय संस्कृति का गहरा प्रभाव पडा । मैक्सिको में आज भी भारत की तरह चपाती, दाल, पेठे आदि बनाये जाते हैं। भारतीय देवी-देवताओं की अनेक मूर्तियां वहां मिलती हैं और भारत के मन्दिरों की तरह वहा भी मन्दिर हैं। वहा भी जन्म-मरण पर भारत के रिवाजों के समान, मृतक के अग्निदाह का रिवाज है।" श्री भिक्खु चमन लाल ने वहां 30 वर्ष व्यतीत किए और भारतीयों के वहां बस जाने के प्रमाण एकत्रित किए । यद्यपि उस देश मे हाथी और चीलें नहीं है तो भी वहां पत्थर पर उनके चित्रो की खुदाई भारतीय प्रभाव की साक्षी है। ईसवी सन् 400 में चीनी यात्री फाह्यान भारत आकर वहां से 200 यात्रियो के बैठाने की क्षमता वाली नाव मे चीन वापिस गया था। भारत में बने हुए इतनी क्षमता वाले जहाज उन समुद्रों को पार करते थे। पेरिस (फ्रास) के म्यूजियम में भी ऋषभदेव की एक सुन्दर मनोज्ञ कलाकृति विद्यमान है। अध्याय 11 जापान और जैन धर्म जापान में भी प्राचीन काल मे श्रमण संस्कृति का व्यापक प्रचार था तथा स्थान-स्थान पर श्रमण संघ स्थापित थे। उनका भारत के साथ निरन्तर सम्पर्क बना रहता था। बाद में भारत से सम्पर्क टूट जाने पर इन जैन श्रमण साधुओं ने बौद्ध धर्म से सम्बन्ध स्थापित कर लिया। चीन और जापान मे ये लोग आज भी जेन बौद्ध कहलाते है । अध्याय 12 मध्य एशिया और दक्षिण एशिया लेनिनग्राड स्थित पुरातत्व संस्थान के प्रोफेसर यूरी जेड्नेप्रोहस्की ने 20
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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