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________________ 34 विदेशो मे जैन धर्म उपाय हृदय शास्त्र में ऋषभदेव के अनुयायियो के मूल सिद्धान्त चित्सग की समीक्षा के साथ प्रकाशित हुए थे जिसमें चित्सङ्ग ने लिखा है कि कपिल, उलूक आदि ऋषियों के मत ऋषभदेव धर्म की शाखायें हैं। तैशो त्रिपिटक (भा. 42, पृष्ठ 247) इस दृष्टि से दर्शनीय है। चित्सङ्ग ने स्वर्ण सप्तति टीका में ऋषभ द्वारा भाग्यहेतु वाद का भी उल्लेख किया इन सब और अन्य सैकडों बौद्ध ग्रन्थों में ऋषभ के सन्दर्भ में पांच प्रकार के ज्ञान (श्रुत, मति, अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञान), चार कषायों. स्याद्वाद, आठ कर्मों आदि जैन धर्म के तत्त्वो का विस्तार से उल्लेख हुआ है। सर्वत्र ऋषभ का उल्लेख "भगवत् ऋषभ" के रूप में हुआ है। यात्रा विवरणो के अनुसार जिरगम देश और ढाकल की प्रजा और राजा सब जैन धर्मानुयायी है। तातार, तिब्बत, कोरिया, महाचीन, खास चीन आदि में सैकडों विद्यामन्दिर है। कहीं-कहीं जैनधमी भी आबाद है। इस क्षेत्र में आठ तरह के जैनी है। खास चीन मे तुनावारे जाति के जैनी है। महाचीन में जांगडा जाति के जैनी थे। ____ चीन के जिरगमदेश, ढांकुल नगर मे राजा और प्रजा सबके धर्मानुयायी हैं। यहां की राजधानी ढांकुल नगर है। ये सब लोग तीर्थंकर की अवधिज्ञान की प्रतिमाओं का पूजन करते हैं। इन्हीं प्रतिमाओ की मनःपर्यय ज्ञान तथा केवल ज्ञान की भी पूजा करते हैं। इन क्षेत्रो मे कहीं-कही जैन धर्मानुयायी भी बड़ी संख्या में आबाद है। पीकिंग नगर में तुनायारे जाति के जैनियों के 300 जैन मन्दिर हैं जो सब मन्दिर शिखरबंध है। इसमें जैन प्रतिमायें खड्गसन और पद्मासन में हैं। मन्दिरों में वनरचना बहुत है जो दीक्षा समय की सूचक है। यहा जैनों के पास जो आगम है वे चीनी लिपि में है। - कोरिया और जैन धर्म : यहा जैन धर्म का प्रचार रहा है। यहा सोनावारे जाति के जैनी हैं। तातार देश में जेन धर्म : सागर नगर मे (यात्री विवरण के अनुसार) जैन मन्दिर पातके तथा घघेलवाल जाति के जैनियों के हैं। इनकी प्रतिमाओं का आकार साढे तीन गज ऊंचा और डेड गज चौडा है। सब
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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