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________________ विदेशों में जैन धर्म 17 जैनों ने स्वभावतः मन्दिरों के साथ-साथ स्तूप भी बनवाये थे और अपनी पवित्र इमारतों के चारों ओर पत्थर के घेरे भी लगाये थे। जैन साहित्य में अनेक स्तूपों के होने के उल्लेख मिलते हैं। जैनाचार्य जिनदत्त सूरि के जैन स्तूपों में सुरक्षित जैन शास्त्र भंडारो में से कुछ जैन ग्रंथों के पाये जाने का भी उल्लेख मिलता है। जैन साहित्य में तक्षशिला, अष्टापद, हस्तिनापुर, सिंहपुर, गांधार, कश्मीर आदि में भी जैन स्तूपों का वर्णन मिलता है। मौर्य सम्राट सम्प्रति ने अपने पिता कुणाल के लिए तक्षशिला में एक विशाल जैन स्तूप बनवाया था। मथुरा का जैन स्तूप तो विश्व विख्यात था ही। चीनी बौद्ध यात्रियों फाहियान हुएनसाग आदि ने अपनी यात्राओं के विवरणो में उनके समय मे जैन धर्म के इन भारत व्यापी स्तूपो को, धर्मान्धता के कारण अथवा अज्ञानतावश अशोक निर्मित बौद्ध स्तूप लिख दिया । यद्यपि सारे भारतवर्ष में सर्वत्र जैन मन्दिर और स्तूप विद्यमान थे तो भी उन बौद्ध यात्रियो के सारे यात्रा विवरणों में जैन स्तूपों का विवरण नहीं मिलता। जहां-जहा इन चीनी यात्रियो ने जैन निर्ग्रन्थ श्रमणों की अधिकता बतलाई है और उन निर्ग्रथों का जिन स्तूपों तथा गुफाओं में उपासना करने का वर्णन किया है, उन्हे भी जैनो का होने का उल्लेख नहीं किया। यद्यपि यह बात स्पष्ट है कि जिन स्तूपों और गुफाओं में जैन निर्ग्रथ श्रमण निवास करते थे, वे अवश्य जैन स्तूप और जैन गुफायें होनी चाहिये । कश्मीर नरेश सत्यप्रतिज्ञ अशोक 25 महान मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त. मौर्य सम्राट् सम्प्रति, सम्राट खारवेल, नवनन्द, कांगडा नरेश आदि अनेक प्रतापी जैन महात्मा और सम्राट हुए हैं जिनके समय में अनेक जैन गुफाओं, मन्दिरों, तीर्थों और स्तूपों के निर्माण के उल्लेख भारतीय साहित्य और शिलालेखों में भरे पड़े हैं। तो भी धर्मान्धता-वश इन बौद्ध यात्रियों ने किसी भी जैन स्तूप अथवा जैन गुफा आदि का उल्लेख नहीं किया तथा वे तो सभी जैन स्तूपों को बौद्ध स्तूप मान कर चले। कवि कल्हणकृत कश्मीर के इतिहास "राजतरंगिणी" में भी वहां के जैन नरेशों द्वारा अनेक जैन स्तूपों के निर्माण का वर्णन मिलता है। जैन आगमों में जैन शास्त्रों में तो जैन स्तूपों के निर्माण के उल्लेख अति प्राचीन काल से लेकर आज तक विद्यमान 25 हैं ।
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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