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________________ 12 विदेशों में जैन धर्म का जन्म स्वायंभुव मनु की पांचवीं पीढी मे हुआ था। स्वायंभुव मनु के पुत्र प्रियव्रत, प्रियव्रत के पुत्र अग्नीध्र, अग्नीध्र के पुत्र अजनाम (नाभिराय) और नाभिराय के पुत्र ऋषभ थे। आदिपुराण में मनु को ही कुलकर कहा गया है। ऋषभदेव के पिता अजनाभ (नाभिराय) अन्तिम कुलकर थे जिनके नाम से यह देश अजनाभवर्ष कहलाता था तथा तदुपरान्त ऋषभपुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर भारतवर्ष कहलाया। - जैन धर्म शाश्वत धर्म है और सृष्टि के आरम्भ से ही विद्यमान रहा है। जैन साधु अति प्राचीन काल से ही समस्त पृथ्वी पर विद्यमान थे, जो संसार त्यागकर आत्मोदय के पवित्र उद्देश्य से एकान्त वनों और पर्वतों की गुफाओ में रहा करते थे। जैन काल गणना के अनुसार तीर्थंकर ऋषभदेव के अस्तित्व का संकेत संख्यातीत वर्षों पूर्व मिलता है। भारतीय वाड्मय के प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद में 141 ऋचाओ में ऋषभदेव की स्तुति और जीवनपरक उल्लेख मिलते हैं। अन्य तीनो वेदों, सभी उपनिषदों एव प्रायः सभी पुराणों और उपपुराणों आदि में भी ऋषभदेव के जीवन प्रसगो के उल्लेख प्रचुरता से प्राप्त होते हैं। उनमे अर्हतो. वातरशना मुनियों, यतियो, व्रात्यों, विभिन्न तीर्थकरों तथा केशी ऋषभदेव सम्बंधी स्थल इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश डालते है । वस्तुतः उस समय श्रमण मुनियो के अनेक संघ विद्यमान थे जब वेदों की रचना हुई, एव पूर्व परम्परा से ही उस समय ऋषभदेव की वन्दना की जाती थी। पुरातत्त्ववेत्ताओं ने ऋषभदेव का समय ताम्रयुग के अन्त और कृषि युग के प्रारम्भ में लगभग 9000 ईसा पूर्व में माना है, किन्तु अन्य मनीषी इस कालगणना से सहमत नही है. तथा उनके अनुसार ऋषभदेव का समय लगभग 27000 ईसा पूर्व माना गया है। स्वायमुव मनु का समय प्राचेतस दक्ष से 43 परिवर्तयुग पूर्व (16000 वर्ष पूर्व) या लगभग 29000 वि पूर्व माना गया है। स्वायंभुव मनु वशिष्ठ प्रथम (29000 वि पूर्व) के समकालीन भी थे। अतः उनकी पाचवी पीढी के वंशज ऋषभदेव का समय तदनुरूप ही 27000 वि पूर्व ग्रहण किया जाना चाहिए। ऋषभदेव और उनकी परम्परा में हुए 23 अन्य तीर्थंकरो द्वारा प्रवर्तित महान् श्रमण संस्कृति और सभ्यता का, उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक सम्पूर्ण भारत मे प्रचार-प्रसार प्राग्वैदिक काल में ही हो गया
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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