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________________ विदेशों में जैन धर्म 105 गए उनकी संख्या का सही अनुमान लगाना कठिन है। इसके अतिरिक्त. म्लेच्छों, आततायियों, धर्म-द्वेषियों ने हजारों-लाखों की संख्या मे हमारे साहित्य के रत्नों को जला दिया। __ जैन मुनियों और मनीषियो ने कोई भी विषय अछूता नहीं रहने दिया जिस पर कलम न चलाई हो। उन्होने आत्मवाद, अध्यात्मवाद, कर्मवाद, परमाणुवाद, नीति, काव्य, कथा, अलंकार-छन्दशास्त्र, व्याकरण निमित्त-शास्त्र, कला, सगीत, जीव विज्ञान, राजनीति, लोकाचार, ज्योतिष, आयुर्वेद, खगोल, भूगोल, गणित, फलित दर्शन, धर्मशास्त्र आदि समस्त विषयों पर निरन्तर साहित्य सृजन किया। इसके अतिरिक्त, उन्होने भाषा विज्ञान, मानस विज्ञान, शिल्पशास्त्र, पशु-पक्षी विज्ञान को भी अछूता नहीं छोड़ा। हंसदेव नामक जैन मुनि ने मृग-पक्षी-शास्त्र नामक ग्रन्थ लिखा था जिसमें 36 सर्ग और 1900 श्लोक है। इसमें 225 पशु पक्षियो की भाषा का प्रतिपादन किया गया है। वस्तुतः विधर्मी आततायियो ने हमारा विपुल साहित्य नष्ट किया तथा विदेशी पर्यटक आदि जैन साहित्य प्रचुर मात्रा में ले गए। जैन इतिहास के साधना मे जैन मूर्तियों, जैन स्तूपो, जैन स्मारकों आदि का विशेष महत्त्व है। विद्वानो ने मूर्ति मान्यता का प्रचलन सर्वप्रथम जैनो का ही माना है। जैन शास्त्रो के आधार से जैन मूर्तियो की मान्यता अनादि काल से चली आ रही है, किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाय ता पाकिस्तान स्थित मोहन जोदडो, हडप्पा आदि सिन्धु घाटी सभ्यता के केन्द्रो की खुदाई से प्राप्त सामग्री से भी, जो ईसा पूर्व 3000 वर्ष पुरानी परातत्त्वेत्ताओं ने मानी है ऋषभदेव सपार्श्वनाथ आदि जैन तीर्थंकरो से सम्बन्धित प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं। जैसे जैन साहित्य पर रोमाचकारी अत्यधिक अत्याचार हुए है, वैसे ही जैन मन्दिरो मर्तियों स्मारको स्तपों आदि पर भी खब जल्म ढाये गए। बड़े-बड़े जैन तीर्थ, मन्दिर, स्मारक, स्तूप आदि मूर्तिभंजकों ने धराशायी किए। जैन मूर्तियो को नष्ट कर उन पर अकित मूर्ति लेखो का सफाया किया गया। अफगानिस्तान, कश्यपमेस (कश्मीर), सिन्धुसौवीर, ब्लूचिस्तान, बेबीलन, सुमेरिया, पजाब, तक्षशिला तथा कामरूप प्रदेश, बंगलादेश आदि प्राचीन जैन संस्कृति बहुल क्षेत्रों में यह विनाशलीला चलती रही। जैन
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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