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________________ विदेशों में जैन धर्म 103 राजशाही के संग्रहालय में सुरक्षित है। ऋषभनाथ की दूसरी प्रतिमा राजशाही के मंदोइल नाम स्थान से प्राप्त हुई है। यह प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में अत्यन्त सुन्दर ढंग से निर्मित की गई है। इसी प्रकार, बंगला क्षेत्र के पुरुलिया, बांकुरा एवं मिदनापुर जिलो के विभिन्न स्थानों से जैन तीर्थकरों की प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं जिनके पार्श्व में अनेक देवी-देवताओं की मूर्तिया भी बनी हैं 48 । ये सभी साक्ष्य बागला देश एवं पश्चिमी बंगाल में जैन धर्म के व्यापक प्रचार के प्रचुर प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इस सम्बन्ध में डॉ. भण्डारकर का विचार है कि जब बिहार एवं कोशल क्षेत्रों में गौतम बुद्ध ने अपने प्रचार के माध्यम से बौद्ध धर्म का प्रमुख क्षेत्र बना लिया तो महावीर स्वामी ने बंगाल को ही सर्वप्रथम अपना प्रचार केन्द्र चुना था । परिणामतः जैन धर्म बगाल एवं उसके आसपास के क्षेत्रो मे अत्यधिक लोकप्रिय हो गया। सम्भवतः प्रारम्भिक काल मे बंगाल मे लोकप्रिय बन जाने के कारण ही जैनधर्म इस प्रदेश के समुद्री तटवर्ती भूभागों से होता हुआ उत्कल प्रदेश के विभिन्न भूभागो मे भी अत्यन्त शीघ्र गति से फैल गया 149 अध्याय 56 विदेशों में जैन साहित्य और कला सामग्री लंदन स्थित अनेक पुस्तकालयों में भारतीय ग्रन्थ विद्यमान है जिनमें से एक पुस्तकालय में तो लगभग 1500 हस्तलिखित भारतीय ग्रन्थ है और अधिकतर ग्रन्थ प्राकृत संस्कृत भाशाओ मे है और जैन धर्म से सम्बन्धित है । जर्मनी में लगभग 5000 पुस्तकालय है। इनमें से बर्लिन स्थित एक पुस्तकालय में 12,000 (बारह हजार) भारतीय हस्तलिखित ग्रन्थ हैं जिनमें बडी संख्या जैन ग्रंथों की भी है । अमेरिका के वाशिंगटन और बौस्टन नगर में पांच सौ से अधिक पुस्तकालय हैं। इनमे से एक पुस्तकालय में चालीस लाख हस्तलिखित पुस्तकें हैं जिनमे भी 20,000 पुस्तकें प्राकृत संस्कृत भाषाओं में हैं जो
SR No.010144
Book TitleVidesho me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulprasad Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1997
Total Pages113
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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