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________________ तस्वार्थसूत्र- निकष / 268 श्री दिगम्बर जैन मन्दिर सतना स्थापना का गौरवशाली 125 वाँ वर्ष : जितनी प्राचीन सतना की विकास यात्रा : लगभग उतना प्राचीन दिगम्बर जैन मन्दिर इतिहासकारों के अनुसार वर्तमान सतना नगर के उत्तर में लगभग 2 मील दूरी पर बसा हुआ गाँव बरदाडीह / Tant है। सन् 1857 की क्रान्ति और उसके बाद भी सतना नगर का भूभाग बरदाडीह बाजार कहलाता था। रीवा रियासत के महाराज रघुराजसिह ने यह भूभाग जो मौजा खजुरी हिस्सा स्वरूपसिह कहलाता था, बरदाडीह के तत्कालीन जागीरदार से सन् 1863 में रेलवे लाइन निकालने और नगर बसाने के लिये लिया था। 31 जुलाई 63 को बरदाडीह बाजार की भूमि ईस्ट इंडियन रेलवे को प्रदान कर दी गई। रेल लाइन बिछनी प्रारम्भ हुई, साथ ही बस्ती ने भी आकार लेना प्रारम्भ किया। सन् 1873 में सतना रेलवे स्टेशन का पूरा विकास हो गया। रेलवे स्टेशन के आसपास बाजार और बस्ती के निवासी मजदूर, छोटे दुकानदार, अहीर, ,कुम्हार और खोचे वाले थे । राज्य से प्रोत्साहन पाकर और व्यापार के लिये अच्छी जगह समझकर राजस्थान, कच्छ, गुजरात, बुन्देलखड, इलाहाबाद, मिर्जापुर, बनारस, कानपुर, झांसी, बाँदा आदि के लोग जिनमे जैन, मारवाडी, कच्छी, गुजराती के अलावा अनेक जाति, पथ, प्रान्त, धर्म और भाषा के लोग थे, आकर बसने लगे। इस नगर का विकास व्यापारियो के परिश्रम के कारण हुआ है। यद्यपि सतना नगर में सबसे प्राचीन स्थल डालीबाबा है, पर अब यहाँ उस काल का कोई मन्दिर नही है। मुख्त्यारगंज मन्दिर का शिलान्यास सन् 1876 में हुआ था, पर कई पीढ़ियों के प्रयास से इसका निर्माण सन् 1925 मे पूर्ण हुआ । इस दृष्टि से शिखरबद्ध मन्दिरों में दिगम्बर जैन मन्दिर को हम सतना का प्रथम पूर्ण विकसित मन्दिर कह सकते हैं, जिसका निर्माण वि. सं. 1937 सन् 1880 में हुआ था। ऐसा लगता है कि यहाँ बसने आये दिगम्बर जैन परिवारो ने इस मन्दिर का निर्माण न्याय और परिश्रम पूर्वक अर्जित अपने द्रव्य से कराया और प्रभावनापूर्वक इसकी प्रतिष्ठा कराई। मन्दिर में मूलनायक के रूप में जैनधर्म के 22 वे तीर्थकर श्री नेमिनाथ स्वामी की एक अत्यन्त सुन्दर, अतिशयकारी प्रतिमा विराजमान है। श्वेत पाषाण से निर्मित यह प्रतिमा लगभग साढ़े तीन फीट ऊँची है। इस मूर्ति के पादपीठ पर मूर्ति का प्रतिष्ठाकाल माघ सुदी 5 सं. 1937 सहित प्रतिष्ठापको के नाम हजारीलाल जवाहरलाल टकित हैं। · जैन समाज सतना द्वारा मन्दिर निर्माण एवं मूर्ति प्रतिष्ठापना के इस गौरवशाली 125 वें वर्ष को बड़े धूमधाम के साथ पूरे वर्ष भर मनाया जा रहा है। परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य परम पूज्य मुनिराज श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज का वर्षावास काल (2 जुलाई से 2 दिसम्बर 2004) सतना नगर को एक अनुप आध्यात्मिक भेंट के रूप में मानो प्राप्त हुआ और सम्पूर्ण सतना नगर धर्ममय हो उठा। मुनि श्री के पावन सानिध्य में सतना नगरवासियों ने 'नेमिनाथ महोत्सव' का ऐतिहासिक आयोजन कर अपनी इस प्राचीन सास्कृतिक और धार्मिक धरोहर के प्रति अपनी श्रद्धा, सम्मान और अनुराग का जो परिचय दिया, वह आने वाली अनेक सदियों तक किंवदन्ती के रूप मे याद किया जाता रहेगा ।
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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