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________________ सतना जिला : पुरातात्त्विक सन्दर्भ में चन्देल कला के लिये विश्वविख्यात मन्दिरों के नगर खजुराहो से लगभग 125 कि0 मी0 दूर सतना जिला देश के उन कुछ महत्त्वपूर्ण स्थलों में से एक है, जो अपने पुरातात्त्विक वैभव के कारण एक विशिष्ट स्थान रखता है। शुंगकाल में निर्मित देश के प्राचीनतम बौद्ध स्तूप से लेकर चन्देल और कलचुरिकालीन कला के उत्कृष्टतम पुरावशेष इस क्षेत्र में उपलब्ध हैं । इस किले से प्राप्त पुरासम्पदा ने देश के अनेक सग्रहालयों को समृद्ध बनाया है । कलकत्ता का भारतीय संग्रहालय, रामवन का तुलसी सग्रहालय, प्रयाग का शासकीय सग्रहालय सहित राष्ट्रीय संग्रहालय पटना, शासकीय संग्रहालय भोपाल, रानी दुर्गावती सग्रहालय जबलपुर, सर हरिसिह गौर संग्रहालय सागर, शासकीय संग्रहालय धुबेला आदि में सतना जिला से प्राप्त मूर्तियों व अन्य अवशेषों को प्रमुखता के साथ प्रदर्शित किया गया है। भरहुत, दुरेहा, भुमरा, सीरा पहाड़, नचना, कुठरा, जसो, पटना, भुमकहर, भरजुना, मैहर, मड़ई, नादन, बछरा, पतौरा आदि वे स्थान है, जिन्होंने अपने पुरातात्त्विक अभिदान से भारत के स्थापत्य, कला और प्रतिमा विज्ञान को, समृद्ध किया है। प्रस्तुत लेख में हम सतना जिला के प्रतिनिधि जैन पुरातात्त्विक स्थलों का सक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत कर रहे हैं - 1. पतियान दाई - सतना नगर से लगभग 10 कि0 मी0 दूर दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक छोटी सी पहाड़ी है। सिन्दूरी रग की होने के कारण यह पहाड़ी 'सिन्दुरिया पहाड़ी' के नाम से भी जानी जाती है । पहाडी पर एक छोटी सी मढ़िया लगभग 6-7 फुट लम्बी और इतनी ही चौड़ी 'डुबरी की मढ़िया' या पतियान दाई' के नाम से यहाँ पर है। इसकी ऊँचाई लगभग साढे सात फुट है। उत्तरोन्मुख मढ़िया के द्वार के दोनो ओर गगा-यमुना की मूर्तियाँ अकित हैं। लगभग आठवीं शताब्दी में निर्मित इस मन्दिर के ललाट बिम्ब पर तीन तीर्थकर पद्मासन मुद्रा मे प्रदर्शित हैं। सादगी से युक्त और आडम्बर विहीन इस मन्दिर में भगवान नेमिनाथ की शासनदेवी अम्बिका विराजमान थी। अम्बिका की यह प्रतिमा अब प्रयाग के संग्रहालय में स्थापित है। लगभग सात फुट ऊँचाई वाली त्रिभंग मुद्रा युक्तं प्रतिमा के परिकर में 24 तीर्थंकर तथा नवग्रह सहित 23 अन्य शासनदेवियों का अंकन हुआ है। सिंह, प्रियंकर तथा शुभकर भी यथास्थान अंकित है 1 24 तीर्थंकर और उनकी 24 शासन देवियों के नाम सहित पट्टिका होने के कारण यह प्रतिमा बही महत्त्वपूर्ण प्रतिमा है। इतनी समृद्ध प्रतिमा अन्यत्र दुर्लभ है। 2. मई - एक ऐसा स्थान जहाँ जैन, वैष्णव और शैव सम्प्रदायों के मन्दिर अपने पूरे वैभव और कलात्मक सौन्दर्य के साथ स्थापित थे। सतना से लगभग 70 कि0 मी0 दूर यह स्थान मैहर के पास था । मन्दिर के अवशेष नहीं रहे पर अभी भी वहाँ की भूमि मूर्तियों, शासनदेवी-देवताओं और अन्य पुरावशेषों को अपने गर्भ से उगल रही है। मड़ई से प्राप्त कुछ महत्त्वपूर्ण प्रतिमा तुनली संग्रहालय रामवन में संरक्षित है। धरणेन्द्र, अद्यावती सहित अन्य शासनदेवी-देवताओं, सगासन पीबीसी, द्वार, तोरण, द्वारपास, वेदिका, स्तम्भ और छज्या आदि के अवशेष प्राप्त हुये हैं।
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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