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________________ तत्वार्थसून-निक / 250 समविनांक 05-09-04 रात्रि 7:30 से 9: 30 श्री सरस्वती भवन, सतना श्री डॉ० कमलेशकुमार जैन की अध्यक्षता और श्री अनूपचन्द जैन के संचालन में संगोष्ठी के छठवें सत्र का शुभारम्भ रात्रि 7 : 30 बजे से श्री सरस्वती भवन में हुआ। कल रात्रि की अपेक्षा आज श्रोताओं की उपस्थिति थोड़ी कम थी। अनुपस्थित श्रोता जैन गणित के उद्भट विद्वान् श्री प्रो० लक्ष्मीचन्द जैन को सुनने से वंचित रह गये । ओवरहेड प्रोजेक्टर को सहायता से उन्होंने लोक की रचना व अन्य गणितीय समस्याओं का बहुत सुन्दर निराकरण किया। उनकी समझाने की शैली अपूर्व थी। उनके पश्चात् श्री महेन्द्रकुमार जैन, श्री डॉ0 सुरेशचन्द्र जैन ने अपने-अपने आलेखों के महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। श्री डॉ० कमलेशकुमार जैन के अध्यक्षीय उद्बोधन के उपरान्त आज का सत्र समाप्त हुआ । सप्तम सत्र दिनांक 06-09-04 सोमवार प्रातः 7 : 30 से 9: 30 की विद्यासागर सभागार सतना मंगलाचरण और दीप प्रज्वलन के उपरान्त स्थानीय विद्वान् श्री पं० सिद्धार्थ जैन ने अपने आलेख का वाचन किया। उन्होंने अपने पिता स्व० श्री पं० जगन्मोहनलाल जी शास्त्री का भावभीना स्मरण करते हुये, जब मस्मरण सुनाए तो सभागार स्व० पं. जी की स्मृतियों में खो गया। श्री डॉ० भागचन्द जैन 'भास्कर' और ब्रह्मचारी राकेश भैया जी ने अपने-अपने आलेखों के महत्त्वपूर्ण अंशों को प्रस्तुत किया। इस सत्र की अध्यक्षता श्री डॉ० रतनचन्द जी और सचालन श्री अनूपचन्द जैन एडवोकेट कर रहे थे। अध्यक्षीय निष्कर्षों के उपरान्त परम पूज्य गुरुदेव 108 प्रमाणसागर जी महाराज ने अपने तलस्पर्शी प्रवचन द्वारा श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने आज प्रस्तुत आलेखों की भी सार-समीक्षा करते हुये अपने बहुमूल्य विचार दिये । अहम सत्र दिनाँक 06-09-04 मध्याह्न 1 : 30 से 5 : 00 श्री सरस्वती भवन सतना दिनाँक 04 से प्रारम्भ इस संगोष्ठी का यह समापन सत्र था। श्री सरस्वती भवन में प्रारम्भ मे श्रोताओं की संख्या नगण्य थी, पर शनै: शनै:- इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई। श्री प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश ने दीपप्रज्वलन कर सत्र का शुभारम्भ किया। मुख्य अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध विद्वान् श्री डॉ० राममूर्ति जी त्रिपाठी उज्जैन मचासीन हुये। जैन समाज सतना द्वारा उनका भावभीना स्वागत किया गया। कार्यक्रम का संचालन सिं. जयकुमार जैन व श्री अनूपचन्द जैन एडवोकेट द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इस सत्र में किसी शोध आलेख का वाचन नहीं हुआ । उपस्थित सभी विद्वानो का सम्मान श्री दिगम्बर जैन समाज के पदाधिकारियों, सर्वोदय विद्वत् संगोष्ठी समिति के उत्साही कार्यकर्त्ताओं व अन्य जैन बन्धुओ द्वारा किया गया। प्रत्येक विद्वान् का स्वागत तिलक लगाकर, पीत पट्टिका उढ़ाकर किया गया। उन्हें विदाई के रूप में एक सुन्दर बैग, एक जोड़ी कॉटन चद्दर व पूज्य मुनि श्री का विशेष रूप से निर्मित स्वर्णखचित चित्र भेंट में दिया गया। सतना की सुप्रसिद्ध मिठाई 'खुरचन' का एक पैकेट उन्हें इस अनुरोध के साथ भेंट किया गया कि यह सतना जैन समाज द्वारा आपके परिवार के सदस्यों के मुँह मीठा करने के लिये है। विदाई की इस भावभीनी रस्म के उपरान्त प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाश जी. ने अपने विचार व्यक्त किये। आयोजन के मुख्य अतिथि श्री डॉ० राममूर्ति जी त्रिपाठी ने मुनि श्री प्रमाणसागर जी के प्रति अपनी वन्दना व्यक्त करते हुये कहा कि 'आप कल्पना नहीं कर सकते हैं कि मुनि श्री प्रमाणसागर जी के प्रति कितनी
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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