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________________ मामा यदि अवस्थाओं में गहरी पहुंच करना हो. तथा तसंवर्द्धन का सारभत लाभ प्राप्त करना हो तो ममक्षको प्रायः विगत सौ वर्षों में विकसित सिस्टम थ्योरी का गहन अध्ययन करना होगा । उसमें आधुनिकतम सभी प्रकार की मणितों का प्रयोग और उपयोग किया गया है। इसी प्रकार विगत दो सौ वर्षों में नियन्त्रण सिद्धान्त भी विकसित किया गया है, और इन दोनों विज्ञानों, सिस्टम थ्योरी और सायबर्नेटिक्स, का उपयोग कम्प्यूटर तथा सूचना संचार आदि में किया गया है। स्थिति रचना यन्त्र जैसी अनेक प्रकार की ब्यूह रचनाओं द्वारा ये सिद्धान्त अपनी चरम सीमाओं तक पहुंचकर विश्व की जीवन शैली को बदल रहे हैं। इनमें कर्म सत्व की उपमा स्टेट से, कर्मासव की उपमा इनपुट से, कर्मबन्ध की उपमा सम्बन्धों से, कर्मनिर्जरा की उपमा आउटपुट से कर उसकी गणितीय विधियों को उसी प्रकार कर्म सिद्धान्त के रहस्यों को निखारने व खोजने में कर सकते हैं। ___ यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है, कि कुछ शताब्दियों पूर्व से अल्पतम तथा अधिकतम मानों का प्राप्त करने के लिये वैज्ञानिकों द्वारा महान् प्रयास किये गये। कर्मवाद ग्रन्थों में अल्पबहुत्व अनेक स्थलों पर निकालकर बतलाये गये हैं। विज्ञान में अल्पतम समय, दूरी, कर्म आदि सम्बन्धी गणनाएँ की गयीं तथा भौतिकी में विचरण सिद्धान्तों की चरम सीमाओं तक पहुंचकर प्रकृति के बलों, क्षेत्रों आदि सम्बन्धी समीकरण स्थापित किये गये। जिस प्रकार कर्म को वैज्ञानिकों ने तथा आइंस्टाइन आदि प्रसिद्ध भौतिकशास्त्रियों ने गणितीय स्वरूप दिया और एतद् सम्बन्धी समीकरणों द्वारा विज्ञान जगत् में अभूतपूर्व रहस्यों का उद्घाटन करने विधियाँ विकसित की, उसी प्रकार जैनाचार्यों ने कर्म को गणितीय स्वरूप दिया, उसकी अवस्थाओं को गणितीय स्वरूप दिया, यहाँ तक कि संदृष्टियों के द्वारा समीकरण, असमीकरण व अल्पबहुल्व का उपयोग करते हुए सीमाएँ निर्धारित कर ली थीं। आइन्सटाइन ने कहा भी है 'सभी अन्य विज्ञानों से ऊपर गणित को विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त होने का एक कारण यह भी है कि जहाँ उसकी प्रतिज्ञप्तियों यथार्थ रूप से निश्चित और विवादरहित होती हैं, वहीं अन्य विज्ञानों की कुछ सीमा तक विवादास्पद होती है तथा नये आविष्कृत तथ्यों द्वारा निरस्त किये जाने के सतत् संकट में होती हैं। गणित के उच्च सम्मान का दूसरा कारण यह है कि गणित के द्वारा शुद्ध प्राकृतिक विज्ञानों में जिस किसी सीमा तक जो निश्चितता प्रविष्ट हुई पायी जाती है वह गणित के बिना उपलब्ध नहीं हो सकती थी।' - आइडियाज एण्ड ओपिनियन्स, 1954, लंदन। ___ अल्पतम समय या दूरी आदि सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाने में कार्यकारण की एक ही युगपत् समय में उपस्थिति का वैज्ञानिकों को उपयोग में लाना पडा । साधारणत: विचार किया जाता है कि इनमें कम से कम एक समय का अन्तर तो होना ही चाहिये, परन्तु यह इस अल्पतम को निकालने में प्रयुक्त विचरण के सिद्धान्तों ( Varnational Principles) को मान्य नहीं है जो प्रकृति का ही चुनाव रूप या धर्म रूप माना जाने लगा तथा इसे Toleology की उपाधि दी गयी। इसी प्रकार जैन कर्मवाद में एक ही समय में जीव और पदगलों के बीच होने वाली अंतरक्रियाएँ मान्य होती हैं। यह विलक्षणता किस प्रकार जैनाचार्यों ने प्रकृति के रहस्यों को खोज करते हुए की यह आश्चर्यजनक तथ्य है। आगे भी तत्वार्थसूत्र में कर्मबन्ध, संवर, निर्जरादि सम्बन्धी दिशामात्र वा संकेतमात्र में कुछ गणितीय प्रमाणों को सूत्रों में निबद्ध किया गया था। जम्बूद्वीप का एक लाख योजन का व्यास, दो चन्द्र, दो सूर्य, उनकी ऊँचाईयाँ आदि आज के विज्ञान से मेल नहीं खाते दिखाई देते हैं, परन्तु उन्हीं के द्वारा जो गणनाएं की जाती थी या हैं, वे आज के आधुनिक विज्ञान के परिणामों से मेल खाते हैं, जहाँ तक माध्य आनुमानिक गणमाएं होती हैं। ऊँचाईयाँ वस्तुत: कोण हैं जो गोलीय त्रिकोणमिति के जानकार भलीभांति समझते हैं।
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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