SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और वह बारहवें गुणस्थान में पूर्ण होता है। तेरहवें मुणस्थान में केवलज्ञान होता है, ऐसा नियम है । ऐसा शास्त्रों में लिखा है, इसलिए - डरो मत! डरो मत ! संयम धारण करो। यह तो आपका कल्याण करने वाला है। इसके सिवाय कल्याण नहीं हो सकता है। संयम के बिना कल्याण नहीं होता। आत्म-चिन्तन के बिना कल्याण नहीं होता। सल्लेखना और भारतीय दण्डविधान : भारतीय दण्डविधान की धारा 306 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करने का प्रयास करे तो जो कोई ऐसी आत्महत्या का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से, किसी भांति के (सश्रम या साधारण) कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्मान से भी दण्डनीय होगा। धारा 309 आत्महत्या करने का प्रयत्न, जो कोई आत्महत्या करने का प्रयत्न करेगा या उस अपराध के करने के लिए कार्य करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जमान से या दोनों से, दण्डित किया जायेगा। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जहाँ आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरित करने वाले को दस वर्ष तक की सजा और जुर्माने का दण्ड दिया जा सकता है वहीं जो व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है उसे एक वर्ष की सजा या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। यह पहला अपराध है जहाँ भारतीय दण्डविधान में अपराध करने के पश्चात् अभियुक्त को सजा नहीं मिलती, क्योंकि आत्महत्या के पश्चात् अभियुक्त का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है, किन्तु आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने वाले को अपराध पूर्ण होने के बाद भी सजा मिल सकती है। ___ माननीय उच्चतम न्यायालय ने पी. रथीनाम बनाम भारत सरकार एवं अन्य के प्रकरण में न्यायमूर्ति आर. एम. सहाय एवं न्यायमूर्ति बी. एल. हंसारिया की दो सदस्यीय खण्डपीठ ने भारतीय दण्डसंहिता की धारा 309 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के परिप्रेक्ष्य में मौलिक अधिकारों का हनन घोषित किया था। और दिनांक 26 अप्रैल 1994 को दिए गए निर्णय में धारा 309 आई. पी. सी. को संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए अवैध घोषित कर दिया था साथ ही यह भी अवधारित किया था कि इस धारा को भारतीय दण्डविधान से हटा देना चाहिए। खण्डपीठ ने इस निर्णय के प्रारम्भ में महात्मा गांधी को उद्धत करते हुए कहा कि - "गांधी जी ने एक बार कहा था कि मृत्यु हमारी दोस्त है, दोस्त का विश्वास करें, यह हमें आतंक और भय से मुक्ति देती है मैं नहीं चाहता कि मैं असहाय और लकवे जैसी स्थिति में एक पराजित व्यक्ति की तरह चिल्लाता हुआ मरूं ।" इसी निर्णय में अग्रेजी कवि विलियम एनवेट हैनले की यह पक्ति भी दी गई है कि - 'मैं स्वयं का मालिक हूँ और अपनी आत्मा का कप्तान ।' इस खण्डपीठ ने संविधान के अनुच्छेद 21 की व्यापक समीक्षा करते हुए और उसके साथ अनुच्छेद 14 की भी
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy