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________________ सूनिक के बिना अधूरी रह जाती है। सल्लेखना साधना के मण्डप पर किया जाने वाला कलशारोहण है। ग्रन्थराज श्री तत्त्वार्थसूत्र जी के अध्याय सात में इसका विवेचन किया गया है। मरण के भेद - मरणं द्वित्रिचतुः पञ्चविधं वा ।। 36 ।। पञ्चातिचारा ॥ 37 | अर्थात् मरण दो, तीन, चार अथवा पांच प्रकार का है | 36 || मरण के दो प्रकार नित्यमरण और तद्भवमरण के भेद से मरण दो प्रकार का है। प्रतिसमय आयु आदि प्राणों का क्षीण होते रहना, नित्यमरण है। इसे आवीचिमरण भी कहते हैं। आयु के पूर्ण होने पर होने वाला मरण तद्भवमरण कहलाता है। मरण के तीन प्रकार - भक्त - प्रत्याख्यानमरण, इंगिनीमरण और प्रायोपगमनमरण ये मरण के तीन भेद हैं। स्व-पर की वैयावृत्तिपूर्वक होने वाली सल्लेखना अथवा समाधिमरण को भक्तप्रत्याख्यानमरण कहते हैं । इसमें आहार आदि का क्रमश: त्याग करते हुए शरीर और कषायों को कृश किया जाता है। जिस सल्लेखना में पर की वैयावृत्ति स्वीकार नहीं होती उसकी इंगिनी मरण संज्ञा है। इस विधि से सल्लेखना धारण करने वाले साधक दूसरों की कोई भी सेवा स्वीकार नहीं करते। अपने और पर के उपकार की अपेक्षा से रहित सल्लेखना को प्रायोपगमनमरण कहते हैं । इस विधि से समाधिमरण करने वाले साधक दूसरों की सेवा तो स्वीकारते ही नहीं, स्वयं भी किसी प्रकार का उपचार / प्रतीकार नहीं करते । वे सल्लेखना धारण करते समय जिस स्थिति या मुद्रा में रहते हैं, अन्त तक वैसे ही रहते हैं, अपने हाथ-पैर तक नहीं हिलाते । वे सभी प्रकार के परीषहों और उपसर्गों को समतापूर्वक सहन करते हैं। उत्तमसंहननधारी मुनिराज ही इस विधि से सल्लेखना धारण करते हैं। मरण के चार भेद - सम्यक्त्वमरण, समाधिमरण, पंडितमरण और वीरमरण, ये मरण के चार भेद हैं। सम्यक्त्व के छूटे बिना होने वाले मरण सम्यक्त्वमरण हैं। धर्मध्यान और शुक्लध्यान के साथ होने वाले मरण को समाधि मरण कहते हैं, भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनीमरण अथवा प्रायोपगमन विधि से होने वाला मरण पंडितमरण कहलाता है। धैर्य और उत्साह के साथ भेद विज्ञान पूर्वक होने वाले मरण की वीरमरण संज्ञा है। मरण के पांच प्रकार - बाल - बालमरण, बालमरण, बालपण्डितमरण, पण्डितमरण, पण्डितपण्डितमरण मरण के ये पांच प्रकार हैं। मिथ्यादृष्टि जीवों का मरण बालबालमरण है। असंयत सम्यग्दृष्टि का मरण बालमरण कहलाता है। देशव्रती श्रावक के मरण को बालपण्डितमरण कहते हैं। चारों आराधनाओं से युक्त निर्ग्रन्थ मुनियों के मरण का नाम पण्डितमरण है तथा केवलज्ञानी भगवान की निर्वाणोपलब्धि पण्डित पण्डितमरण कहलाती है । समाधि : सामान्य लक्षण - वयणोद्धार करिव परिचतं वीयरायभावेण । जो शायद अप्पाणं परमसमाही हवे तस्स | 122 11 संजयमणियमतवेण दु धम्मज्झाणेण सुनखझावेण । जो शावर अप्पाणं परमसमाही हवे तस्स || 123 ॥
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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