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________________ तस्वार्थमा निक/ 125 ne h abinternationanda समानामा 6. तत्त्वार्थसूत्र में जित क्रियाओं को मन, वचन कर्म के योग 6. भारतीय दण्डविधान में संकल्प द्वारा की गई क्रिया से से करने पर शुभ एवं अशुभ भावों के आसव और उत्पन्न अपराध के दण्ड का प्रविधान है। मात्र संकल्प तो तदनुसार पुण्य, पाप एवं उसके परिणाम के बारे में दण्डनीय ही नहीं है। विवेचना की गई है। 7. तस्वार्थसूत्र के अनुसार प्रत्येक जीव को उसके किये गये 7. भारतीय दण्डविधान के अनुसार यह आवश्यक नहीं है कि कर्मो के आस्रव का चाहे वे शुभ हों या अशुभ हों फल जिसने अपराध किया हो उसे दण्ड मिल ही जाये अनेक भोगना ही पड़ता है। ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। जिन्हें हम साम, दाम, दण्ड और भेद के रूप में कह सकते हैं, जिनके कारण अपराध करने वाला व्यक्ति दण्ड पाने से बच जाता है। जैसे रिश्वत आदि। 8. तत्त्वार्थसूत्र में अध्याय 6 के सूत्र 15 में बहुत आरम्भ और 8. भारतीय दण्डविधान में ऐसा कोई विवेचन नहीं है। परिग्रह बाले भाव को नरकगति का कारण कहा है। इसी प्रकार सूत्र 16 में तिर्यच आयु का, सूत्र 18 में मनुष्य आयु का एव सूत्र 21 में देव आयु का तथा सूत्र 25, 26 व 27 में क्रमश: नीचगोत्र, उच्चगोत्र एवं अन्तराय का आस्रव का विवेचन है। 9. तत्त्वार्थसूत्र के अध्याय 7 के सूत्र 13 में हिंसा के लिए कहा 9. ऐसा कोई विवेचन भारतीय दण्ड विधान में नहीं है। गया प्रमत्तयोग से प्राणों का वध करना ही हिमा है और प्रमत्त अर्थात् प्रमाद को कषाय सहित अवस्था का रूप दिया है। 15 प्रकार के प्रमादों का भी विवरण दिया है, जिसमें 5 इन्द्रियाँ, 4 कषाय, 4 विकथा (स्त्रीकथा, राजकथा, चोरकथा, भोजन कथा), निद्रा तथा स्नेह के रूप में निरूपित किया गया है। 10. तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार 5 पाप एवं उसके कारण दर्शाये 10. भारतीय दण्डविधान में धारा-425 अनिष्ट से सम्बन्ध गये हैं और ये भी कहा गया है कि द्रव्यहिंसा और रखती है। इसके अनुसार धारा 428 और 429 अपराध भावहिसा दो प्रकार की हिंसा है। जैसे- यदि कोई की खुली छूट देती है। धारा 428 के अनुसार यदि कोई मछली पकड़ने वाला किसी जलाशय में कांटा और जाल व्यक्ति 10/- रूपये या उससे अधिक मूल्य के किसी लेकर मछली पकड़ने गया और पूरे दिन प्रयास करने के ! जीव जन्तु या जीवजन्तुओं का वध करके विष देने बाद भी उसके जाल में एक भी मछली नहीं आई तो विकलांग करने या निरुपयोगी बनाने का अनिष्ट कार्य भी उसे हिसा का अपराध होगा। करता है तो वह दो वर्ष की सजा या आर्थिक दण्ड या दोनों से दण्डित किया जा सकेगा । यहाँ यह तथ्य उल्लेखनीय है कि यदि वह व्यक्ति १ रूपये 99 पैसे सक के जीवजन्तुओं को जिनकी संख्या सैकडों और हजारों
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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