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________________ 'उत्पादव्ययौव्ययुक्तं सत् : एक व्याख्या ___* . अशोक जैन, दशमप्रतिमाधारी अव्य का स्वरूप जैनदर्शन में पदार्थ को सत् कहा गया है। सत द्रव्य का लक्षण है। यह उत्पाद-व्यय-धौव्य लक्षण वाला है। वस्तुत: जगत् का प्रत्येक पदार्थ परिणमनशील है। सारा विश्व परिवर्तन की धारा मे बहा जा रहा है। जहाँ भी हमारी दृष्टि जाती है, सब कुछ बदल रहा है । वह देखो ! सामने पेड खड़ा है, उसमें कोपलें फूट रही हैं, पत्तियों बढ़ रही हैं, वे झड़ रहीं हैं, प्रतिक्षण वह अपनी पुरानी अवस्था को छोड़कर नित-नवीन रूप धर रहा है । बालक युवा हो रहा है, युवा वृद्ध हो रहा है, वृद्ध मर रहा है। सर्वत्र परिवर्तन ही परिवर्तन है। चाहे जड़ हो या चेतन, सभी इस परिवर्तन की धारा में बहे जा रहे हैं। प्रत्येक पदार्थ विश्व के रंगमंच पर प्रतिक्षण नया रूप धर कर आ रहा है। वह अपनी पुरानी अवस्था को छोडता है, नये को ओढ़ता है। पुराने का विनाश और नये की उत्पत्ति ही इस परिवर्तन का आधार है । कच्चे आम का पक जाना ही तो आम का परिवतेन है। बालक का युवा, युवा का वृद्ध हो जाना हो तो मनुष्य का परिवर्तन है। पुरानी अवस्था के विनाश को व्यय कहते हैं तथा नयी अवस्था की उत्पत्ति को उत्पाद। नये की उत्पत्ति और पुराने के विनाश के बाद भी द्रव्य अपनी मौलिकता को नहीं खोता। कच्चा आम बदलकर भले ही पक जाये पर वह अपने आमपने को नहीं खोता। बालक भले ही वृद्ध हो जाए, पर मनुष्यता नहीं बदलती । इस मौलिक स्थिति का नाम धौव्य है, जो प्रतिक्षण परिवर्तित होते रहने के बाद भी पदार्थ में समरूपता बनाए रखता है। इस प्रकार प्रत्येक पदार्थ उत्पाद -व्यय-धौव्य लक्षण वाला है। जगत् का कोई भी पदार्थ इसका अपवाद नहीं है। पुरानी अवस्था का विनाश और नये की उत्पत्ति दोनों साथ-साथ होती हैं, प्रकाश के आते ही अन्धकार तिरोहित हो जाता है। इनमें कोई समय भेद नही है। यह परिवर्तन प्रतिक्षण हो रहा है, यह बात अलग है कि सूक्ष्म होने के कारण वह हमारी पकड़ के बाहर है अर्थात् हम उसे देख नहीं पा रहे हैं । बालक, यौवन और प्रौढ अवस्थाओं से गजरकर ही वृद्ध हो पाता है। ऐसा नहीं है कि कोई साठ-सत्तर वर्ष की अवस्था में एकाएक वृद्ध हो गया, वह तो साठ-सत्तर वर्ष तक निरन्तर बद्ध होता रहा है, वृद्ध होने की यात्रा प्रतिक्षण हुई। यदि एक क्षण भी वह रुक जाए तो वह वृद्ध हो ही नहीं सकता। १. सद्रव्यलक्षणं । - तत्वार्थसूत्र, 5/29 २. उत्पादन्यपधौव्ययुक्तं सत् । - वही, 5/30 १. सर्वार्थसिद्धि, पृ. 229 २.धौव्यमवस्थितिः। - प्रवचनसार, तात्पर्यवृत्ति, 95 *उदासीन आश्रम, तुकोगंज, इन्दौर,
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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