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________________ 1 तत्कार्थस् / 403 का कारण है। उपचार से कार्य भी इस प्रकार है कि लोक में स्कन्धों के भेद से परमाणु की उत्पत्ति देखी जाती है। इसी कारण आचार्य उमास्वामी ने कहा है - 'मैदावणुः " अर्थात् अणु भेद से उत्पन्न होता है। किन्तु यह भेद की प्रक्रिया तब तक चलनी चाहिए जब तक कि स्कन्ध द्वधणुक न हो जाये। स्कन्धों की उत्पत्ति स्कन्धों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में उमास्वामी ने तीन कारण दिये हैं- 1. भेद से, 2. संघात से और 3. भेद तथा संघात (दोनों) से "मातेच्यः उत्पद्यन्ते "२ । यया 1. भेद से जब किसी बड़े स्कन्ध के टूटने से छोटे-छोटे दो या अधिक स्कन्ध उत्पन्न होते हैं तो वे भेदजन्य स्कन्ध कहलाते हैं। जैसे एक ईट के तोड़ने से उसमें से दो या अधिक टुकड़े होते हैं । ऐसी स्थिति में वे टुकड़े स्कन्ध हैं तथा बड़े स्कन्ध टूटने से हुए हैं अतः भेद-जन्य हैं। ऐसे स्कन्ध द्वयणुक से अनन्ताणुक तक हो सकते हैं। - संघात से - संघात का अर्थ है जुडना । जब दो परमाणुओं या स्कन्धों के जुडने से स्कन्ध की उत्पत्ति होती है तो वह संघात - जन्य उत्पत्ति कही जाती है। यह तीन प्रकार से सम्भव है अ. परमाणु + परमाणु, आ. परमाणु + स्कन्ध, इ. स्कन्ध + स्कन्ध । ये भी द्व्यणुक से अनन्ताणुक तक हो सकते हैं। - भेद - संघात दोनों से जब किसी स्कन्ध के टूटने के साथ ही उसी समय कोई स्कन्ध या परमाणु उस टूटे हुए स्कन्ध में मिल जाता है तो वह स्कन्ध भेद तथा सघातजन्य स्कन्ध कहलाता है। जैसे टायर के छिद्र से निकलती हुई वायु उसी क्षण वायु से मिल जाती है। यहाँ एक ही काल में भेद तथा संघात दोनों हैं। बाहर निकलने वाली वायु का टायर के भीतर की वायु से भेद है तथा बाहर की वायु मे संघात ये भी द्वयणुक से अनन्ताणुक तक हो सकते हैं। पुद्गल की पर्यायें 'शब्दबन्धसौक्ष्म्यस्पल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योतवन्तश्च'' अर्थात् पुद्गल शब्द, बन्ध, सूक्ष्मत्व, स्थौल्य, संस्थान, भेद, अंधकार, छाया, आतप और उद्योत रूप होते हैं। शब्द - शब्द पुद्गल की पर्याय है, आज के विज्ञान ने शब्द को पकड़कर ध्वनि-यन्त्रों, रेडियो, टी.वी. टेपरिकार्डर, टेलीफोन, ग्रामोफोन, कम्प्यूटर आदि से स्थिर कर दिया है, और एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेज दिया है। जैनदर्शन के अनुसार लोक में सर्वत्र भाषा वर्गणायें व्याप्त हैं। जिस वस्तु से ध्वनि निकलती है उस वस्तु में कम्पन होने के कारण इन पुदगल वर्गणाओं में भी कम्पन होता है, जिससे तरंगे निकलती हैं। ये तरंगें ही उत्तरोत्तर पुद्गल की भाषा वर्गणाओ में कम्पन पैदा करती हैं, जिससे शब्द एक स्थान से उद्भूत होकर दूसरे स्थान पर पहुँच जाता है।' विज्ञान भी शब्द का वहन इसी प्रकार की प्रक्रिया द्वारा मानता है। बन्ध - परस्पर में श्लेष बन्ध कहलाता है। बन्ध का ही पर्यायवाची शब्द है संयोग। परन्तु संयोग में केवल अन्तर रहित अवस्थान होता है, जबकि बन्ध में एकत्व होता, एकाकार हो जाना आवश्यक है । बन्ध प्रायोगिक और वैखसिक के भेद से दो प्रकार का है। यथा - १. तत्त्वार्थसून, 5/27 २. वही, 5/26 ३. वही, 5/24 ४. तत्त्वार्थसूत्र, पं. फूलचन्द्र शास्त्री कृत व्याख्या, पृ. 230
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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