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________________ 88 / स्वार्थानिका इलेक्ट्राम कक्ष + हीलियम की पर आणविक संरचना नाभिक 2 प्रोटान्स 2 न्यूट्रान्स परमाणु में उपस्थित इन सूक्ष्म कणों की संख्या वर्तमान में तीस तक हो गई है परंतु यह सभी (इलेक्ट्रॉन, प्रोटान एवं न्यूट्रॉन को छोड़कर) अल्पकालिक हैं। इस प्रकार उपर्युक्त परिभाषानुसार विज्ञान मान्य परमाणु बहुप्रदेशी सिद्ध होता जो कि जैन दर्शन के अनुसार परमाणु न होकर स्कंध की श्रेणी में आता है। जैन दर्शन के अनुसार अणु और परमाणु दोनों पर्यायवाची हैं और अंतिम रूप से अविभाज्य हैं। परमाणु की उत्पत्ति भेद द्वारा अर्थात् विघटन द्वारा होती है।' सायन विज्ञान में अणु को परमाणु से भिन्न माना गया है और इसे परिभाषित करते हुए कहा गया है कि पदार्थ का वह सूक्ष्मतम अंश जो दो या दो से अधिक समान परमाणुओं अथवा असमान परमाणुओं के शोग से निर्मित होता है तथा जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है और जिसमें पदार्थ (पुद्रल) के समस्त गुण विद्यमान हों, अणु कहलाता है। इस परिभाषानुसार विज्ञान मान्य अणु एवं जैन दर्शन मान्य स्कंध एक ही हैं पृथक नहीं, क्योंकि एक से अधिक अणु या परमाणुओं के समूह को स्कंध कहते हैं। विश्लेषण : स्कंधोत्पत्ति की प्रक्रियायें विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में - स्कंधोत्पत्ति की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए आचार्य उमास्वामी ने कहा है कि 'भेद संवातेभ्य उत्पद्यन्ते अर्थात् भेद, संघात एवं भेदसंघात इन तीन प्रक्रियाओं द्वारा स्कंधोत्पत्ति होती है। यहाँ भेद का अर्थ विघटन से है तथा संघात का तात्पर्य है संयोजन से और भेदसंघात का अर्थ है भेद और संघात का साथ-साथ होना। कुछ स्कंध भेद अर्थात् परस्पर विघटित होकर निर्मित होते हैं तो कुछ स्कंध संघात अर्थात् परस्पर संयोजन के फलस्वरूप बनते हैं तथा कुछ स्कंध ऐसे भी हैं जो विघटव और संयोजन दोनों प्रक्रियाओं के एक साथ होने पर निर्मित होते हैं । २. बही, 28. रसायन विज्ञान के अनुशीलन से भी इन तीनों प्रक्रियाओं का पता चलता है। कुछ ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिनमें भेद द्वारा स्कंधोत्पत्ति होती है। 1. dung, wenfin, 4/27..
SR No.010142
Book TitleTattvartha Sutra Nikash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain, Nihalchand Jain
PublisherSakal Digambar Jain Sangh Satna
Publication Year5005
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size20 MB
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