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________________ षष्ठ प्रकाश विहृत्यार्यखण्डे सुधर्मामृतस्य प्रवृष्ट्या समग्ताज्जगज्जीवसस्यान् । प्रवृद्धान् चकारारूपोऽधिपो यः स वीरः प्रवीरः प्रमोदं प्रदद्यात् ॥ २० ॥ अर्थ – जिन्होने आर्य खण्डमे विहारकर सद्धर्मरूप अमृतकी वर्षा - से सर्वत्र जगत् के प्राणीरूप धान्योको बढाया था, इस तरह जो मेघस्वरूप थे वे अतिशय शूर-वीर महावीर भगवान् श्रेष्ठ आनन्द प्रदान करें ॥ २० ॥ अनेकान्तदण्डः प्रचण्डरखण्ड: विभेदाशु यस्य प्रकृष्टः प्रभावः समुद्दण्डवादिप्रवेतण्डगण्डान् । स वीरः प्रवीरः प्रमोदं प्रदद्यात् ॥ २१ ॥ अर्थ - जिनके प्रकृष्ट प्रभावने शक्तिशाली एव अखण्डित अनेकान्तरूपी दण्डोके द्वारा बडे-बडे वादीरूपी हस्तियोके गण्डस्थलोको शीघ्र हो विदोणं किया था वे अतिशय शूर-वीर महावीर भगवान् श्रेष्ठ आनन्द प्रदान करें ॥ २१ ॥ ततो व्यानरूपं निशातं विसातं कृपाणं स्वपाणौ य आवाय सद्य । अघातीनि हत्वा बभूव प्रमुक्त स वीर प्रवीर. प्रमोदं प्रदद्यात् ॥ २२ ॥ अर्थ - तदनन्तर ध्यानरूपी तीक्ष्ण अत्यन्त शुक्ल कृपाणको हाथमे लेकर अघातिया कर्मोका नाशकर जो मुक्त हुए थे वे अत्यन्त शूर-वीर महावीर भगवान् श्रेष्ठ आनन्द प्रदान करें ॥ २२ ॥ अयामन्दमानन्दमाद्यन्तहीनं निजात्मप्रजातं ह्यनक्षं समक्षम् । चिरं यश्च भेजे निजे नजरूपं स वीरः प्रवीरः प्रमोदं प्रदधात् ॥ २३ ॥ अर्थ -- मुक्त होनेके बाद जो अनादि, अनन्त, निजात्मासे उत्पन्न, अतीन्द्रिय, आत्मरूप एवं प्रत्यक्ष बहुत भारी मानन्दको प्राप्त हुए थे वे अत्यन्त शूरवीर महावीर भगवान् श्रेष्ठ आनन्दको प्रदान करें ।। २३ ।।
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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