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________________ सम्यक्चारित्र-चिन्तामणि यह श्याम वर्ण है, यह लाल है और यह पीला है इस प्रकारके विकल्प, जालसे गृहस्थ पीडित है। मुझे गौर वर्ण स्त्री अच्छी लगती है और श्याम वर्ण स्त्री अच्छी नही लगती, इस प्रकारके विकल्प समूहके बीचमे पडे ससारी जीव रागद्वषको धारण करते हुए कर्मबन्ध करते है परन्तु रागद्वेषसे रहित वोतराग मुनि, रूप तथा गन्ध आदिसे रहित आत्मस्वरूपका ध्यान करते है। आत्मध्यानमे लोन साधुओके लिये रूप क्या है और गन्ध क्या है ? अर्थात् कुछ नहीं ॥ २६-३० ।। आगे कर्णेन्द्रिय-जय मूलगुणको चर्चा करते है वीणावेणुस्वरादोना रागो येषां न विद्यते । खरोष्ट्रकाविशब्देषु द्वेषो येषा न जायते ॥ ३१ ॥ प्रशसाशब्दमाकर्ण्य हर्षो येषां न जायते। निन्दाशब्दावली श्रुत्वा द्वेषो येषा न वर्तते ॥ ३२ ॥ त एव मुनयो धोराः धोत्राक्षजयिनो मताः। यथा वीणारवं श्रुत्वा निश्चलतां गता मृगाः॥३३॥ वधिकानां शमिन्ना नियन्ते काननेऽचिरात् । तथा गीतप्रिया मा आसक्ता रम्यगीतिषु ॥ ३४ ॥ अन्योऽन्य कलहायन्ते म्रियन्ते च यदा कदा । एकेकाक्षवशा जीवाः प्राणान्तमुपयान्ति चेत् ॥ ३५ ।। तदा सर्वन्द्रियाधीना लभन्तं त कथं न हि। इत्थ विचार्य निर्ग्रन्था अक्षाणा जयिनोऽभवन् ॥ ३६ ।। इष्टानिष्टप्रसङ्गषु रागद्वेषौ 'न याति यः। तमक्षजयिन साधु प्रणमामि पुनः पुनः॥ ३७॥ अर्थ-जिन्हे वीणा और बाँसुरीके स्वर आदिका राग नही है और गर्दभ तथा ऊँट आदिके शब्दोमे जिन्हे द्वेष नहीं होता। प्रशसाका शब्द सुनकर जिन्हे हर्ष नही होता और निन्दाके शब्द सुनकर जिन्हे द्वेष नही होता वे धोर वीर मुनि हो कर्णेन्द्रिय-जयो माने गये है। जिस प्रकार वीणाका शब्द सुन स्थिरताको प्राप्त हुए हरिण बधिकोके वाणोसे विदोर्ण हो वनमे शोघ्र मारे जाते है उसी प्रकार सगोतके प्रेमो तथा मनोहर गोतोमे आसक्त मनुष्य परस्पर कलह करते और जब कभी मरते रहते है। एक-एक इन्द्रियके अधीन जोव जब मृत्युको प्राप्त होते है तब सभी इन्द्रियोके अधोन रहने वाले मनुष्य मृत्युको प्राप्त क्यो नही होगे? ऐसा विचार कर निर्ग्रन्थ मुनि इन्द्रिय विजयो होते
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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