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________________ प्रथम प्रकाश जानने योग्य है । इष्ट-अनिष्ट पदार्थोंमे राग-द्वेषका त्याग करना, सत्पुरुषोके द्वारा समता कहो गई है । यह समता आत्म शुद्धिको देने वाली है। चौबीस तीर्थंकरोमेसे किसी एक तीर्थकरका हर्षपूर्वक जो स्तवन किया जाता है वह वन्दना कहलाती है और सभी तीर्थंकरोका भक्तिसे जो स्तवन किया जाता है वह स्तुति नामक आवश्यक कहलाता है । यह आवश्यक मुनियोको आनन्द देनेवाला है । भूतकालीन दोषोका प्रायश्चित दिलाने वाली साधु समूहको जो क्रिया है वह प्रतिक्रमण मानी गई है। भावो कालमे कभी भी ऐसा पाप नही करूगा इस प्रकारका जो नियम है वह प्रत्याख्यान कहलाता है । अन्तरङ्ग और बहिरङ्ग परिग्रहका त्यागकर महामन्त्रका ध्यान करते हुए जो शरीरसे मोह छोड़ा जाता है वह व्युत्सर्ग नामका आवश्यक कहलाता है ।। ४६-५३ ।। आगे शेष सात गुणोका वर्णन करते हैं लोचाचेलक्यमस्नान भूशय्याऽदन्तधावनम् । स्थितिभुक्त्येकमुक्ती च सप्तैते शेष सद्गुणाः ॥ ५४ ॥ मासद्वयेन मासैस्तु त्रिभिर्मासचतुष्टयात् । शिरः स्थान्श्मकूर्च स्थान्कच्चान् लुञ्चेत् प्रमोदतः ॥ ५५ ॥ लुञ्चस्य दिवसे कार्य उपवासो नियोगत. । एकान्ते लुञ्चनं श्रेष्ठमहंभावनिवारणात् ।। ५६ ।। ब्रह्मचर्यस्य शुद्ध्यर्थमाचेलक्य मुदा वहेत् । नर्ग्रन्थ्ये विद्यमानेऽपि नाग्न्यं मूलगुणो मतः ॥ ५७ ॥ चेलखण्ड परित्यागाद् ब्रह्मचर्यं परीक्ष्यते । वस्त्रान्त विकृतिर्व्रष्टुं नैव शक्या शरीरिभिः ॥ ५८ ॥ जोबहिंसा निवृत्यर्थं वैराग्यस्य च वृद्धये । स्नानत्यागो विधातव्यः साधुभिः शिवसाधकैः ।। ५९ ।। विष्टरादिपरित्यागे भूशय्या शरणं मतम् । कट: पलालपुज्जो वा कदाचिद् ग्राह्य उच्यते ॥ ६० ॥ रजन्याः पश्चिमे भागे श्रमस्य परिहाणये । शेरते मुनयः किञ्चिद् भूपृष्ठे जातु कर्कशे ॥ ६१ ॥ कुन्दपुष्पामदम्ताली वृष्ट्वा रागः प्रजायते । तद्रागस्य विनाशायादन्तधावनमुच्यते ॥ ६२ ॥
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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