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________________ प्रथम प्रकाश ७ अर्थ -- ईर्ष्या, भाषा, एषणा, आदान-न्यास ( आदान-निक्षेप ) और व्युत्सर्गं ये पाँच समितिया महाव्रतोकी रक्षाके लिये कही गई हैं । मुनिराज दिनमे जो चार हाथ जमीन देखकर चलते हैं वह ईर्या समिति है। मुनि जो हित-मित प्रिय वाणीको बोलते हैं उसे सत्य वचनके स्वामी जिनेन्द्र भगवान्ने भाषा समिति कहा है। मुनि दिनमे एक बार जो यथाविधि पाणिपात्रमे भोजन करते हैं वह साधुओका कल्याण करने वाली ऐषणा समिति जानने योग्य है । ज्ञानके उपकरण शास्त्र, शौचके उपकरण कमण्डलु और संयमके उपकरण पीछो आदिको देखकर उठाना रखना आदान-न्यास ( आदान-निक्षेपण ) समिति ज्ञानो जनो द्वारा मानी गई है। जोवरहित स्थानमे मुनियो द्वारा जो मलमूत्र आदिकी बाधा से निवृत्ति की जाती है वह व्युत्सर्ग या प्रतिष्ठापना समिति मानी गयी है ।। ३२-३७ ॥ आगे पञ्च - इन्द्रिय-जयका वर्णन करते हैं स्पर्शनं रसनं घ्राणं चक्षु श्रवणमेव च । हृषीकाणि समुच्यन्ते समुच्यन्ते सम्यग्ज्ञानधरैर्नरैः ॥ ३८ ॥ हृषीकाणां जय. कार्यः साधुवीक्षासमुद्यतः । ये हि बासा हृषीकाणा तेषां दीक्षा क्य राजते ॥ ३९ ॥ कामिनीकोमलाङ्गे च रूक्षं पाषाणखण्डके । रागद्वेषौ न यस्य स्तः स भवेत् स्पर्शनोज्जयी ॥ ४० ॥ इष्टानिष्टरसे भोज्ये माध्यस्थ्यं यस्य विद्यते । रसनाक्षयस्तस्य शस्यते भुवि साधुभि ॥ ४१ ॥ सौगन्ध्ये चापि दौर्गन्ध्ये माध्यस्थ्य न जहाति यः । घ्राणाक्ष विजयो स स्यात् कर्मक्षपणतत्परः ॥ ४२ ॥ मनोशे ह्यमनोज्ञे च रूपे यस्य न विद्यते । वैषम्य विप्रपत्तिश्च स चक्षुविजयी भवेत् ॥ ४३ ॥ निन्दायां स्तवने यस्य माध्यस्थ्य नैव हीयते । श्रवणाजयो स स्यात् साधुवीक्षाधरो नरः ॥ ४४ ॥ यथा खलोनतो होना हयाः कापथगामिन. । तथा संयमतो होना नराः कापथगामिनः ॥ ४५ ॥ अर्थ- सम्यग्ज्ञानको धारण करनेवाले मनुष्योके द्वारा स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण ये पाँच इन्द्रियाँ कही जाती हैं । मुनिदीक्षा के लिये उद्यत मनुष्योको इन्द्रियोको जय करना चाहिये । क्योकि
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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