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________________ प्रथम प्रकाश के द्वारा चारित्र कहा जाता है। इस जगत्मे चारित्र ही मोक्ष प्राप्तिका प्रमुख हेतु माना गया है ॥ ६ ॥ अथवा मोहध्वान्तापहारे प्रकटितविशवज्ञानपुञ्जो जनो यो रागावीनां निवृत्य परिहरति सदा पापतापं दुरन्तम् । चारित्रं सन्मुनीन्द्रः शिवसुखसदन कीर्त्यते कोतिपात्र__राचार्यरात्मनिष्ठनिखिलगुणपरैः स्वात्मसंवेदनाढ्यः ॥१०॥ अर्थ-मोह-मिथ्यात्वरूपो अन्धकारके नष्ट हो जानेपर प्रकट होने वाले निर्मल ज्ञान समूहसे युक्त मनुष्य, रागादिक विभाव भावो को नष्ट करनेके लिए जो सदा दुखदायी पापरूपो सन्तापका त्याग करता है वही आत्मनिष्ठ-आत्मध्यानमे लोन, समस्त गुणोका धारक तथा स्वात्मानुभूतिसे युक्त यशस्वी, मुनिराज आचार्योंके द्वारा चारित्र कहा जाता है। यह चारित्र मोक्ष सुखका सदन है-अर्थात् चारित्रसे हो मोक्ष सुखकी प्राप्ति होती है ॥ १० ॥ अथवा आत्मस्वभावे स्थिरता मुनीनां या वर्तते स्वात्मसुखप्रवात्री। सा कोय॑ते निर्मलबोधवद्भिश्चारित्र नामा परमार्थतश्च ॥ ११॥ अर्थ-निश्चयनयसे मुनियोकी, स्वात्मसुखको देनेवालो जो आत्मस्वभावमे स्थिरता है वही निर्मल ज्ञानधारी मुनियोके द्वारा चारित्र कहा जाता है ॥११॥ अथवा हिंसाविपापाद् व्यवहारतो या भवेन्मुनीनां विनिवृत्तिरेषा। चारित्रनाम्ना भवि सा प्रसिद्धा कौघकक्षानल पुञभूता ॥१२॥ अर्थ-व्यवहारनयसे-चरणानुयोगकी पद्धतिसे मुनियोको जो हिसादि पापोसे निवृत्ति है वही पृथिवोपर चारित्र नामसे प्रसिद्ध है। यह चारित्र कर्मसमूहरूप वनको भस्म करनेके लिये अग्नि समूहके समान है ॥ १२॥ आगे चारित्रको कौन मनुष्य प्राप्त होता है, यह कहते हैं मोहस्य प्रकृतीः सप्त हत्या प्राप्तसुदर्शनः । कर्मभूमिसमुत्पन्नो नरो भव्यत्वभूषिता॥१३॥ तस्वनामयुतो भीतो भवनमणसन्तो।। माजवंजवसिन्धोरच तोरं प्राप्य प्रसन्नधीः ॥१४॥
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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