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________________ परिशिष्ट १२. युग-युग-जूबासे पोड़ित बैलके समान गर्दन पसारकर बड़े हो कायोत्सर्ग करता युग दोष है। १३. कपित्य-कथाके समान मुठी बांधकर खड़े हो कायोत्सर्ग करना कपित्य दोष है। १४ शिर:प्रकम्पित-शिरको कपाते हुए खड़े होकर कायोत्सर्ग करना शिरा प्रकम्पित दोष है। १५ मूकस्व-मूकके समान मुखविकार तथा नासाको संकुचित करते हुए खड़े होकर कायोत्सर्ग करना मूकत्व दोष है। १६. अंगुलि-कायोत्सर्गमें खड़े होकर अंगुलियां चलाना अथवा उनसे गणना करना अगुलि दोष है। १७. घू-विकार-भौहोको चलाते अथवा पैरोको अंगुलियों को ऊंचानोचा करते हुए खडे होकर कायोत्सर्ग करना 5-विकार दोष है। १८. वारुणोपायी-वारुणी-मदिरा पोने वालेके समान झूमते हुए खड़े होकर कायोत्सर्ग करना वारुणीपायी दोष है। शोलके अट्ठारह हजार मेव मूलाचारके शोल-गुणाधिकारमे प्रतिपादित शीलके अट्ठारह हजार भेद इस प्रकार हैं तीन योग, तीन करण, चार संज्ञाएं, पांच इन्द्रिय, दश पृथिवीकायिक आदि जोवभेद, और उत्तम, क्षमा आदि दशधर्म, इनका परस्पर गुणा करनेसे शोलके अट्ठारह हजार भेद होते हैं। योग, संज्ञा, इन्द्रिय और क्षमादि दशधर्म प्रसिद्ध हैं। अशुभ-योगरूप प्रवृत्तिके परिहारको करण कहते हैं। निमितभेदसे इसके भो तीन भेद है-मन, वचन और काय । पृषिवोकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, प्रत्येक वनस्पति, साधारण वनस्पति, दोन्द्रिय, मोन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय ये पृथिवीकायिक आदि १० जीवभेद हैं। ३४३४४४५४१०४१० - १६,००० शोलके अट्ठारह हजार भेद अन्य प्रकारसे भो परिपणित किये जाते हैं।
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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