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________________ परिशिष्ट १७७ ७. उम्मित्र दोष-मिट्टी, अप्रासुक जल, सचित्त वनस्पति तथा बोज आदिसे मिला हुआ आहार उन्मित्र आहार है। इसे लेना उन्मित्र दोष है। ८. अपरिणत दोष-तिलोदक; चणेका धोवन, चावलोका धोवन तथा हरित वनस्पति आदिने जब तक अपना रूप, रस, गन्ध, स्पर्श नही बदला है तब तक वह अपरिणत कहलाता है ऐसा आहार लेना अपरिणत दोष है। ९ लिप्त दोष-गर, हरिताल आदिसे लिप्त बर्तनमे रखा हुआ जल आदि आहार लिप्त दोषसे दूषित होता है। १० व्यक्त दोष-पाणिपुटमे आये हुए आहारको अधिक मात्रामे नोचे गिराते हुए आहार करना, अथवा अञ्जलिमे आयो हुई एक वस्तु को नीचे गिराकर दूसरो इष्ट वस्तु लेना व्यक्त दोष है। संयोजनादि चार रोष १ संयोजना दोष, २. प्रमाण दोष, ३. अंगार दोष और ४. धूम दोष। इनका स्वरूप इस प्रकार है १ संयोजना दोष-परस्पर विरुद्ध वस्तुओंके मिला देने पर सयोजना दोष होता है, जैसे-अत्यन्त गर्म जलमे अप्रासुक शीतल जल मिला कर उसे पीने योग्य बनाना, या अत्यन्त गाढ़ो दाल आदिमें अप्रासुक शीतल जल मिला कर उसे खाने योग्य बनाना। २ प्रमाण दोष-प्रमाणसे अधिक भोजन लेने पर प्रमाण दोष होता है। उदरके दो भाग माहारसे, एक भाग पानोसे भरना चाहिये तथा एक भाग वायुके संचारके लिये छोड़ना चाहिये। ३. अंगार बोष-गृवतावश अधिक आहार लेना अंगार दोष है। ४. धूम बोष-अरुचिकर भोजनकी मनमें निन्दा करते हुए लेना धूम दोष है। चौदह मल १. नख, २. रोम ( बाल ), ३. जन्तु, १. हड्डी, ५. कण ( जो गेहूँ आदिके बाहरका अवयव ), ६. कुण्ड (चावलके ऊपर लगा हुआ कन आदि), ७. पीप, ८. चर्म, ६. रुधिर, १०. मांस, ११. बोज
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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