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________________ १३० सम्यक्चारित्र-चिन्तामणिः अयोगेषु भवेदेकं क्षायिकं नेतरसु तत् । एकद्वियोग युक्तेषु सम्यक्त्वं नास्ति किञ्चन ।। ५२ ।। वेदश्रयेण युक्तेषु जायते त्रिविधं तु तत् । भावतो, न तु द्रव्यस्त्री क्षायिकं लभते क्वचित् ॥ ५३ ॥ गतवेदेषु जायेत द्वितयं वेदकं विना । क्षोणमोहादिषु ज्ञेयं केवलं क्षायिक तु तत् ॥ ५४ ॥ क्षायोपशमिकज्ञान चतुष्केण विशोमिषु । त्रयः सम्यक्वमेदाः स्युः, क्षायिकज्ञानशालिषु ॥ ५५ ।। केवलिषु भवेदेकं क्षाधिकं नेतरत्पुनः । मन:पर्यययुक्तेषु शमजं नव जायते ।। ५६ ।। अर्थ- इन्द्रियानुवादको अपेक्षा खोटो गतिसे युक्त, एकेन्द्रियसे लेकर असज्ञो पञ्चेन्द्रिय तकके जोवोके एक भी सम्यग्दर्शन नही होता । पञ्चेन्द्रिय जीवोमे तीनो सम्यक्त्व होते है । कायमार्गणाको अपेक्षा स्थावरोमे कोई भी सम्यग्दर्शन नही होता परन्तु पुण्यशाली सोमे तीनो प्रकारका सम्यक्त्व होता है। योगमार्गणाकी अपेक्षा तोनो योगोसे युक्त जीवोमे तीनो सम्यग्दर्शन होते हैं, अयोगियोके एक क्षायिक ही होता है अन्य दो नही होते। एक योग वाले -स्थावरोके और दो योग वाले - द्वीन्द्रियसे लेकर असज्ञो पञ्चेन्द्रिय तक्के जोवोको कोई भो सम्यक्त्व नही होता । वेदमार्गणाको अपेक्षा तीनो भाव वेदोसे युक्त जोवोके तोनो सम्यग्दर्शन होते हैं परन्तु द्रव्य-स्त्री कही भी क्षायिक सम्यक्त्वको प्राप्त नही होती। अपगत वेदो जीवोके क्षायोपशमिक को छोडकर ओपशमिक और क्षायिक, ये दो सम्यग्दर्शन होते हैं परन्तु अपगत वेदियोमे जो क्षीणमोहादि गुणस्थानवर्ती हैं उनको एक क्षायिक हो जानना चाहिये। ज्ञानमार्गणाकी अपेक्षा चार क्षायोपशमिक ज्ञानोसे सहित जोवोके सम्यक्त्वके तोनो भेद होते हैं परन्तु क्षायिक ज्ञानसे सुशोभित केवलियो के एक क्षायिक सम्यक्त्व हो होता है शेष दो नही । क्षायोपशमिक ज्ञानो मे मन:पर्ययज्ञान से युक्त जीवोके औपशमिक सम्यग्दर्शन नही होता ॥ ४६-५६ ॥ आगे सयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञो और आहारमार्गणाको अपेक्षा सम्यग्दर्शनका कथन करते हैं सामायिके तथा छेदोपस्थापन विशोभिते । त्रयः सम्यक्त्वमेवाः स्युरात्म पौरवशालिनाम् ।। ५७ ।।
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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