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________________ नवम प्रकाश माहारके सम्मि पठमेक मवेविह। विधिक भवेवा गुणस्थानचतुष्टयम् ।। १७ ॥ सन्मित्रं मनु विस तृतीयस्थानमन्तरा। कार्मणे कायपोगे - प्रवन - द्वितीयकम् ॥१८॥ चतुर्य व समुद्घातगतकैवल्यपेक्षया। प्रयोदशं भवेमातु समयश्तियावधि ॥ १९॥ अर्ष-बार मनोयोगों और चार बचनयोगोमें प्रथमसे लेकर द्वादश तक गुणस्थान होते हैं। सस्य मनोयोग और अनुभय मनोयोग तथा सत्य वचनयोग और अनुभय वचनयोगमे आदिके तेरह गुणस्थान होते हैं। औदारिक मिश्रकाययोगमें पहला, दूसरा, चौथा और कपाट समुद्घात गतसयोग केबलीकी अपेक्षा तेरहवां गुणस्थान होता है। औदारिक काययोगमे आदिके तेरह गुणस्थान जानना चाहिये । आहारक और माहारकमिश्र काययोगमे एक छठवां हो गुणस्थान होता है। वक्रियिक काययोगमे आदिके चार गुणस्थान होते हैं परन्तु वैक्रियिक मिश्र काययोगमे ततोय गुणस्थान नहीं होता और कार्मण काययोगमे पहला, दूसरा, चोषा और समुद्घात केवलीको अपेक्षा तेरहवां गुणस्थान होता है। कामण काययोग अधिकसे अधिक तोन समय तक ही रहता है। १३-१६॥ आगे वेद, कषाय और ज्ञान मार्गणामे गुणस्थानोका वर्णन करते हैं मावानि स्यु सदेवानां नवधामानि भावतः। द्रव्यस्त्रीणां तु विशेयं प्रथमात्पञ्चमावधिः॥२०॥ सकवायस्य जीवस्य राधामानि सन्ति हि। निष्कायस्थ बोध्याम्पेकायसप्रमतोनि ॥२१॥ मतितावधिताने चतुर्वातावशावधिम् । मनापर्ययबोधे तु पटाप बावसावधिम् ॥ २२ ॥ केवले - मवेदत्य युगलं गुणधामकम् । कुमती कुमुते साने विमोच नियोगतः ॥ २३ ॥ प्रथम द्वितयं मे गुणस्थानं शरीरिणाम् । मर्ष-भाव वेदकी अपेक्षा सवेद जीवोके आदिके नौ गुणस्थान होते है परन्तु द्रव्य स्त्रियोंके प्रथमसे लेकर पञ्चम तक गुणस्थान होते हैं। कषाय सहित जीवोंके प्रारम्भके दश गुणस्थान होते हैं और कषाय रहित जीवोंके एकादश मादि गुणस्थान होते हैं। मतिज्ञान, श्रुतमान
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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