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________________ १२२ सम्यक्पारित-चिन्तामणिः आगे अनुप्रेक्षाधिकारका समापन करते हैंभव्या इमा द्वादशनावना ये स्विरेण चित्तम हि भावयन्ति । मध्यमुद्रापरिरक्षणे ते शक्ता भवेयुनियमेन भव्याः ॥ १२४ ॥ अर्थ-जो भव्य पुरुष, स्थिर चित्तसे इन उत्तम बारह भावनामोका चिन्तवन करते हैं वे नियमसे निम्रन्थ मुद्राकी रक्षा करनेमे समर्थ होते हैं ॥ १२४ ॥ इस प्रकार सम्यक्-चारित्र-चिन्तामणिमे अनुप्रेक्षाओका वर्णन करने वाला अष्टम प्रकाश पूर्ण हुआ। नवम प्रकाश ध्यान सामग्री मङ्गलाचरणम् ध्यानेन भित्त्या भवबन्धनानि रागादिदोषोपनिबन्धनानि । प्रापुः प्रियां मुक्तिमनस्विनी ये सिद्धान् विशुद्धान् सततं नुमस्तान् ॥ १॥ अर्थ-जो ध्यानके द्वारा रागादि दोषरूप तीव्र कारणोसे मुक्त ससारके बन्धनोको तोडकर मुक्तिरूपो गौरवशालिनी प्रियाको प्राप्त कर चुके हैं, मैं विशुद्ध परिणामोसे युक्त उन सिद्ध परमेष्ठियोको बारबार स्तुत करता हूं ॥१॥ अब चित्तकी स्थिरताके लिये ध्यानकी सामग्रीका वर्णन करते हैं अथ वक्ष्ये गुणस्थानं मार्गणासु यथाक्रमम् । ध्यान तस्वस्य सिद्धचर्य यथाबुद्धि यथागमम् ॥ २॥ १. श्रेष्ठा.।
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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