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________________ सम्यक्चारित्र-चिन्तामणिः कहते हैं। इस तरह ज्ञानाचारके आठ भेद संक्षेपसे कहे। अब आगे चारित्राचार वर्णन करनेके योग्य है ॥ ५५-५६ ॥ अब चारित्राचारका कथन करते हैं अहिंसासत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यापरिग्रहो। महाव्रतानि पञ्चव कथितानि जिनागमे ॥ ५७ ॥ ईर्याभाषणादाननिक्षेपणत्युत्सर्गकाः । प्रसिद्ध व्रतरक्षार्थ समितीनां हि पञ्चकम् ॥ ५८॥ कायगुप्तिर्वचोगुप्तिममोगुप्तिश्च भावतः। एतद् पुप्तित्रयं प्रोक्त चरणागमविश्रुतम् ॥ ५९॥ एषामाचरण जेयं चारित्राचारसंहितम् । एतत्स्वरूपसंख्यानं पूर्व विस्तरतः कृतम् ॥ ६॥ अर्थ-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, जिनागममे ये पांच ही महाव्रत कहे गये हैं। ईर्या, भाषा, एषणा, आदान निक्षेपण और व्युत्सर्ग ये व्रतोकी रक्षा करने वाली पाँच समितियाँ प्रसिद्ध हैं। कायगुप्ति, वचनगुप्ति और भावपूर्वक की गई मनोगुप्ति ये तीनगुप्तियों चरणानुयोगमे प्रसिद्ध है। पांच महाव्रत, पांच समिति और तीनगुप्ति इन तेरहका आचरण करना चारित्राचार है । इन सबका स्वरूप पहले विस्तारसे कहा जा चुका है ॥ ५७-६० ॥ अब आगे तप आचारका वर्णन करते हुए बाह्य तपोका वर्णन करते हैं इतोऽग्ने वर्णयिष्यामि तपआचारसंनितम् । आचारं मुनिनाथानां घोरारण्यनिवासिनाम् ॥ ६१॥ इच्छाया विनिरोधोऽस्ति तपा सामान्यलक्षणम् । बाह्याभ्यन्तरभेदेन तत्तपो द्विविध स्मृतम् ॥ ६२॥ उपवासोऽवमोदयवृत्तोपरिसंख्यानकम् । परित्यागो रसानां च विविक्तशयनासनम् ॥ ३ ॥ कायक्लेशश्च संप्रोक्ता बालानां तपसा भिवा । अन्न पानं तथा खाधं लेां चेति चतुर्विधा॥ १४ ॥ आहारो विद्यते पुंसां प्राणस्थिति विषायकः। एतच्चतुविधाहारत्यागो छपवासो मतः॥६५॥ तुर्यषष्ठाष्टमादीनां भेदेन बहुमेक्वान् । एकद्वित्रादि प्रासानां क्रमशो हानितो मतः॥६६॥
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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