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________________ सप्तम प्रकाश ७ अर्थ-जो मुनि शरीरमे स्थित प्रमादको छोड़कर उपर्युक्त कार्योंको करते हैं उनका कहीं कर्मबन्धमे कारणभूत, मिथ्या विकथामोमे कभी पतन नही होता ॥ १२१॥ इस प्रकार सम्यकचारित्र-चिन्तामणिमें षडावश्यकोका वर्णन करनेवाला छठवां प्रकाश पूर्ण हुआ। सप्तम प्रकाश पचाचाराधिकार पञ्चाचारपरायणान् मुनिबरानाचार्यसंज्ञायुतान् बीमावानसमुद्यतान् दुषनुतान् संग्नानसंमूषितान् । बादीमान् प्रविजेतुमुखततमान् शास्त्राधिपारगतानाचार्यान् परमेष्ठिनः प्रतिदिनं संनोमि शान्त्या युतान् ॥१॥ अर्थ-जो पञ्चाचारके पालन करनेमे तत्पर हैं, मुनियोंमे श्रेष्ठ हैं, भाचार्य नामसे सहित हैं, दीक्षा देनेमे समुद्यत हैं, सम्यग्ज्ञानसे सुभूषित हैं, वादीरूपी गजोको जोतनेके लिये अत्यन्त तत्पर हैं, शास्त्ररूपो सागरके पारगामी हैं और शान्तिसे सहित हैं, उन आचार्य परमेष्ठियोको में प्रतिदिन नमस्कार करता हूँ॥१॥ आगे पञ्चाचारके नाम तथा स्वरूपका निरूपण करते हैं पञ्चाचारमयो बक्ये सारान् मुनिवषस्य हि। बसनं च तथा सानं चारित्रं तप एव च ॥ २ ॥ वीर्य च पञ्चमा सन्ति ह्याचारा जिनभाषिताः। आचार्या पालयन्स्येतान पालयन्ति परामपि ॥ ३ ॥ एषां स्वरूपमत्राहं बण्यामि कमशः पुरः। देवशास्वगुरूणां च मोक्षमार्गसहायिनाम् ॥ ४ ॥ भवाम पर्सनं प्रोक्तं मूत्रयविजितम्। मानाचष्टमातीतं सोपानं शिवसमनः॥ ५ ॥ माचं जीवावितस्वाना यापार्येन विशुम्भताम् । भवानं दर्शनं मे संशयातिविजितम् ॥ ६ ॥ १. कायोत्सर्ग सम्बन्धी दोषोका वर्णन परिशिष्टमे देखें ।
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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