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________________ षष्ठे प्रकाश मोहमल्लमदमेवनधोरं कीर्तिगान मुखरीकृतवीरम् । खगविनिपातितमारं तं नमामि वर मल्लिजिनेन्द्रम् ॥ ५२ ॥ अर्थ - जो मोहरूपी मल्लका गर्व खण्डित करनेमे धोर थे, जिन्होने अपने कीर्तिगानसे वीरोको मुखर किया था अर्थात् बडे-बडे वीर जिनका कीर्तिगान किया करते थे और जिन्होने धैर्यरूपी खड्गके द्वारा कामको मार गिराया था उन मल्लि जिनेन्द्रको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ ५२ ॥ मन्ता यो वे वेबस्वार्थबोषाद हिंसादीनां ध्वंसतः सुव्रतश्च । तं तीर्थेश भग्नकर्मारिशोषं भक्त्या नम्रः सुव्रतं सनमामि ॥ । ५३ ॥ अर्थ - जो आगम प्रतिपादित तत्त्वार्थके जानकार होने से मन्ता - मुनि हैं तथा हिंसादि पापोका नाश करनेसे सुव्रत हैं एव जिन्होंने कर्मरूपी शत्रुओके शिरको भग्न कर दिया है उन मुनि सुव्रत तोर्थङ्करको में भक्तिसे नम्र हो नमस्कार करता हूँ ॥ ५३ ॥ सकलबोधधरं गुणिनां वरं हितकर जगतां शमताकरम् । स्थिरतया जितमेरुमहीधरं नमिजिनं जिनमामि निरन्तरम् ॥ ५४ ॥ अर्थ - जो पूर्ण ज्ञानके धारक थे, गुणी जनोमे श्रेष्ठ थे, जगत्का हित करनेवाले थे, शान्तिके आकर थे और जिन्होने स्थिरताके द्वारा मेरु पर्वतको जीत लिया था उन नमिनाथ जिनेन्द्रको में निरन्तर नमस्कार करता हूँ ॥ ५४ ॥ बुधाधिनाथम् । विज्ञानलोकत्रितयं समन्तादनन्तबोधेन तं माननीय मुनिनाथनेमि नमाम्यहं धर्मरथस्य नेमिम् ॥ ५५ ॥ अर्थ- जिन्होने अनन्तज्ञान - केवलज्ञानके द्वारा तोनो लोकोको सब ओर से जान लिया था, जो ज्ञानीजनोके स्वामी थे तथा धर्मरूपी रथके नेमि-प्रवर्तक थे उन माननीय नेमिनाथ भगवान्‌को मै नमस्कार करता हूँ ॥ ५५ ॥ येनातिमानः कमठस्य मानो यस्तोऽसमस्थंयंगुणाणुर्नव । बेहप्रभादीपित पार्श्वदेश तं पार्श्वनाथं सततं नमामः ॥ ५६ ॥ अर्थ – जिन्होने अपने धैर्यं गुणके अंशमात्रसे कमटके बहुत भारी मानको नष्ट कर दिया था, शरीरको प्रभासे निकटवर्ती प्रदेशको देदोप्यमान करनेवाले उन पार्श्वनाथ भगवान्‌को हम नमस्कार करते हैं ॥ ५६ ॥ यं जन्मकल्याणमहोत्सवेषु सुराः समागत्य सुरेशलोकात् । क्षीरा विधनीरैरबिमेरुशृङ्गं समभ्यसिञ्चम् वरभक्तिभावात् ॥ ५७ ॥
SR No.010138
Book TitleSamyak Charitra Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1988
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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