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________________ के द्वारा किये उल्लेखों को छोड़कर पाश्चात्य विद्वानो द्वारा लिखित सर्व प्रथम जैन सम्बन्धी रचना यही है । सन् १८०६ में कर्नल मेकेजी का निबन्ध ऐन एकाउन्ट माफ दी जेन्स' और एच० टी० कोलबुक का निबन्ध 'माबजरवेशन्स पान दी जेन्स' कलकत्ते के एशियाटिक रिसर्चेज (जिल्द ६, पृ० २४३-२८६) में प्रकाशित हुए । सन् १८२५ मे पादरी जे० ए० डुबाइ के संस्मरण पेरिस (फान्स) से प्रकाशित हुए जिनमे जैन धर्म और जैन जाति के विषय मे बहुत कुछ लिखा है उसी वर्ष ए० स्टरलिंग ने 'उडीसा की जैन गुफाओं' पर अपना लेख प्रकाशित किया । सन् १८२७ मे फेन्कलिन, हैमिल्टन, डेलमेन आदि विद्वानो ने जैन विषयक लेख लिखे । तदुपरान्त उक्त शताब्दी के मध्य पर्यन्त एच० एच० विल्सन, जेम्स टाड, जे० स्टीवेन्सन, जे० प्रिन्सेप, जे० फर्गुसन आदि विद्वानो ने अपने लेखों द्वारा जैन सम्बधी लोक ज्ञान की अभिवृद्धि की। किन्तु जैनधर्म सस्कृति साहित्य पुरातत्त्व और इतिहास पर व्यवस्थित शोध खोज और साहित्य सृजन सन् १८५० के पश्चात् ही प्रारभ हुए और इस दिशा मे पिशेल, होनले, फलांग, पुल्ले, हूलर, जैकोबी, बेबर, लेसन, फलीट, राइस द्वय, टामस, लूडर्स, वर्गस, कीलहान, गिरनाट, स्मिथ, हुल्टज्य, क्लैट, प्रोल्डन वर्ग, किटेल, कनिंगहम हर्टले, मोनियर, विलियम्स, विन्टर निट्ज, पीटरसन, ल्यूमेन आदि विभिन्न जातीय प्रसिद्ध यूरोपिय प्राच्यविदो तथा भगवान लाल इन्द्र जी भार. जी० भडारकर, भाऊदजी, के० बी० पाठक, ध्रुव, तैलग, राजेन्द्र लाल मित्र, सतीश चन्द्र विद्याभूषण, टी० के० लड्डु, के० पी० जायसवाल मादि प्रख्यात भारतीय विद्वानों ने प्रशसनीय कार्य किया। किन्तु इस शताब्दी के प्रारंभ से ही इस कार्य मे कुछ शिथिलता पाने लगी। प्रथम विश्व युद्ध के समय से तो उपरोक्त प्रकार के स्वतत्र प्रकाड यूरोपीय विद्वानों का इस क्षेत्र मे प्रायः अभाव ही हो गया । केवल पुरातत्त्वादि विभागों से सम्बषित कतिपय राजकाय अधिकारी ही प्रसगवश कुछ कार्य करते रहे। किन्तु साथ ही साथ यह सतोष है कि अनेक जैनाजैन भारतीय विद्वान इन कार्यों के सम्पादन में लगे
SR No.010137
Book TitlePrakashit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
PublisherJain Mitra Mandal
Publication Year1958
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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