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________________ जिनको कुछ 'सन्मति' कहते हैं, कुछ कहते जिनको 'वर्द्धमान' । कुछ 'महति' या कि 'अतिवीर' 'वीर' कह कर गाते है यशोगान ॥ कुछ कहते हैं ' कुण्डनपुर प्रकाश' कुछ कहते हैं 'सिद्धार्थ-लाल' । कुछ जिनको 'त्रिशला - नन्दन' कह, निज भाल झुकाते हैं त्रिकाल || यों अपने अपने प्रिय नामोंसे जिनको भजते धर्मवीर | पर जिनके इन सब नामों से भी अधिक लोकप्रिय 'महावीर' || परम ज्योति महावीर उनके ही मन की करुणा सी, उनकी यह करुण कहानी है । यह मसि से लेख्य नहीं, इसको, लिखता कवि-ग का पानी है ॥ नहीं कवित्व-प्रदर्शन है, यह प्रतिभा का उपहार नहीं । यह नहीं बुद्धि का कौशल है, यह कविता का शृंगार नहीं ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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