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________________ परम ज्योति महावीर मनोविज्ञान -मन की प्रकृति, वृत्तियों आदि का विवेचन करने वाला विज्ञान, मानस शास्त्र । विद्यालय - वह स्थान जहाँ अध्ययन किया जाता है, विद्यागृह । संसारी - जो कर्म बन्ध सहित जीव श्रनादि से नरक, पशु, मनुष्य, देव गति में भ्रमण कर रहे हैं । मोक्ष -बन्ध के कारण मिथ्यादर्शन, अविरति, कपाय, योग के दूर हो जाने पर तथा पूर्व बाँधे कर्म की निर्जरा हो जाने पर सर्व कम से छूट जाना व अपने श्रात्मीक शुद्ध स्वभाव का प्राप्त कर लेना, सादि अनन्त जीव की अवस्था है । यह ६२२· अरहन्त - पूजने योग्य, श्रई धातु पूजा में है तथा श्र से प्रयोजन श्ररि शत्रु मोहनीय कर्म और अन्तराय कर्मर से तात्पर्य रज अर्थात् ज्ञानावरण व दर्शनावरण उसको हन्त-नाश करने वाले इस प्रकार - हन्त का अर्थ हुआ चार घातिया कर्मों का नाश करने वाले । हिंसा - प्रमाद सहित (कपाय युक्त) मन वचन काय के द्वारा द्रव्य व भाव प्राणों को कष्ट देना व उनका घात करना | हिंसा दो प्रकार की है— संकल्पी और प्रारम्भी । आरम्भी के तीन भेद हैं- उद्यमी, गृहारम्भी और विरोधी । यज्ञ-हवन पूजन युक्त एक वैदिक कृत्य । होम - वाह्मणों द्वारा नित्य किया जाने वाला पंच महायज्ञों में से कए । वेद - हिन्दुओं के आदि धर्म ग्रन्थ ( पहिले ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद ये तीन ही थे, पीछे अथर्ववेद भी मिलाया गया ) ।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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